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नेपाल की त्रासदी से उपजे प्रश्‍न व उनके समाधान

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शरद सिंगी

भूवैज्ञानिक बताते हैं कि करोड़ों वर्षों पूर्व पृथ्वी पर अलग-अलग महाद्वीप न होकर बस एक ही विशाल महाद्वीप था।  यह विशाल महाद्वीप दो भागों में विभाजित हुआ जिन्हें भूवैज्ञानिक  लौरसिआ और गोंडवाना के नाम से जानते हैं।  गोंडवाना पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में था जो  पुनः कई विशाल भूखंडों  में विभाजित हुआ।  ये भूखंड तैरते तैरते दूर दूर निकल गए जिन्हें आज हम अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अरब द्वीप, अन्टार्टिका और भारतीय उपमहद्वीप के नाम से जानते हैं। दूसरा विशाल भूखंड  उत्तरी गोलार्ध में था वह भी विभाजित हुआ और इसने जन्म दिया उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया (भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़कर) को। नौ करोड़ वर्षों पूर्व भारतीय उप-महाद्वीप गोंडवाना से  मेडागास्कर के समीप टूटकर अलग हुआ था।  इस भूखंड ने उत्तर पूर्व की ओर रुख किया।  बीस सेंटी मीटर प्रति वर्ष की गति से सरकते हुए पांच करोड़ वर्ष पूर्व यह  भूखंड उत्तरी गोलार्ध में पहुंच गया और यूरोप-एशिया भूखंड से जा टकराया। 
इन अलग अलग हुए भूखंडों को प्लेट कहा जाता है। भारतीय प्लेट जब यूरेशियन प्लेट से टकराई तो तिब्बत का पठार और हिमालय पर्वत बना। इन दोनों प्लेटों के बीच आज भी जोरआजमाइश जारी है। इसी जोरआजमाइश के अभिकेंद्र में नेपाल बैठा है। आपसी घर्षण से उपजी ऊर्जा संग्रहित  होने लगती है और जब इतनी संचित हो  जाती है कि और अधिक जमा रखना नामुमकिन हो जाता है तब जिस तरह भाप का दबाव बन जाने पर प्रेशर कुकर की सीटी बज जाती है उसी तरह  तब सिस्मिक(भूकम्पीय) तरंगों के माध्यम से यह संग्रहीत ऊर्जा पृथ्वी के गर्भ से मुक्त हो जाती है।  पृथ्वी पर पड़ी दरारें  इसी  ऊर्जा के मुक्त होकर बाहर निकलने का परिणाम है। ऊर्जा मुक्त होने के बाद गुब्बारा पुनः शून्य पर आ जाते हैं और फिर वापस ऊर्जा का संचय शुरू हो जाता है अगले भूकम्प के लिए जिसे पांच से आठ दशक का समय लग जाता है। 
 
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भारतीय और यूरेशियाई  प्लेटों के  इस संघर्ष में भारतीय प्लेट की भीतरी परत उत्तर की ओर जा रही है और सतह की परत दक्षिण की ओर। नेपाल के इस भूकम्प में पूरा काठमाण्डू तीन मीटर दक्षिण की ओर खिसक गया और भारतीय प्लेट का अंदरुनी हिस्सा बीस फुट  तक नेपाल में घुस गया। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष दो इंच की गति से  नेपाल में घुसे जा रही है। हमें न तो इन भूकम्पों को  विधाता का प्रकोप मानना चाहिए और न ही प्राकृतिक आपदा। यह मात्र एक प्राकृतिक घटना है जिसे रोका तो नहीं जा सकता परन्तु जन-धन की हानि से पूर्वोपाय करके बचा जा सकता है। इस भूकम्प के मात्र एक सप्ताह  पूर्व ही संसारभर से  पचास भूकम्प वैज्ञानिक काठमाण्डू में एकत्रित हुए थे।  वे जानते थे कि अनियोजित तरीके से बसा काठमाण्डू एक भीषण त्रासदी की कगार पर बैठा है।  वे हल ढूंढना चाह रहे थे कि काठमाण्डू को इस आने वाली आपदा के लिए कैसे सावधान और मुस्तैद किया जाए।  
 
वे यह भी जानते थे कि उनके पास समय कम है किन्तु आपदा इतनी  जल्दी आएगी शायद इसकी उन्होंने  कल्पना भी नहीं की थी। वैज्ञानिक भूकम्प प्रवृत्त क्षेत्रों को जानते हैं किन्तु भूकम्प कब आएगा इसकी गणना कर पाना अभी संभव नहीं हो पाया है। प्लेटों के संगम पर स्थित कई शहर हैं जो कभी भी हादसों के शिकार हो सकते हैं।  समय रहते सरकारों ने कार्य योजनाएं नहीं बनाईं तो इन आपदाओं में मानवता दफ़न होती रहेगी। इन शहरों में भूकम्परोधी भवनों को ही बनाने की अनुमति होना चाहिए।  आपदा के समय के लिए पूरा मुकम्मिल तंत्र होना चाहिए तथा इन शहरों में बाहर से आकर बसने वालों पर नियंत्रण होना  चाहिए।  ऐसे कई कदम सरकार उठा सकती है ताकि जानमाल का नुकसान न हो। इस सम्बन्ध में जापान की उन्नत तकनीक एवं अनुभव से काफी कुछ सीखा जा सकता है। 
 
भारतीय नागरिकों के लिए संतोष की बात रही कि भारत का आपदा प्रबंधन विभाग अति शीघ्रता के साथ हरकत में आया। उधर चीन भी हरकत में आया और सहयता भेजना आरम्भ किया। लेकिन पश्चिमी समीक्षक और भारतीय पत्रकार  इन दोनों देशों की त्वरित प्रतिक्रिया में राजनीति देख रहे हैं। चीन पिछले कुछ वर्षों  से नेपाल को अपनी झोली में डालने के प्रयास में है और नेपाल में सबसे बड़ा निवेशक बन गया है। जानने योग्य है कि चीन ने न तो 2004 की सुनामी आपदा में और न ही 2005 के काश्मीर भूकम्प में सहायता के लिए कोई रूचि दिखाई दी थी।  वहीं पिछले कई वर्षों से नेपाल के रिश्तों को हाशिए पर रखने  वाला  भारत, नई सरकार के आने के बाद से कूटनीतिक परिवर्तन करते हुए नेपाल से  रिश्तों को मजबूत बनाने  में जुट गया है।  भारत, नेपाल को अपने छाते के नीचे देखना चाहता है। ऐसे में भारत और चीन दोनों से मिली त्वरित सहायता को लेकर विश्व के समीक्षक कई अर्थ निकाल रहे हैं।  

खैर, राजनीति अपनी जगह है किन्तु पिछले कुछ माह में ही पहले इराक में फंसी भारतीय नर्सों को सकुशल निकालना फिर यमन से 4700 भारतीयों और  26 देशों के 1950 विदेशी नागरिकों को सुरक्षित ले आना तथा अब नेपाल में तुरंत सहायता पहुंचाना भारत सरकार की बढ़ती कार्यक्षमता का परिचायक  है। दीपक का परिचय उसके प्रकाश से होता है और यदि भारत को महाशक्तियों की श्रेणी में आना है तो अपने आप को और अधिक कार्यक्षम और सहायता के लिए तत्पर बनाना होगा। राह तो हमने चुन ली है, दिशा भी सही है, दृढ़ विश्वास बनाए रखें मंज़िल पर पहुंचने का।
 

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