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'मर्दानी' शब्द प्रयोग से लेखिका चित्रा मुदगल सहमत नहीं

हमें फॉलो करें 'मर्दानी' शब्द प्रयोग से लेखिका चित्रा मुदगल सहमत नहीं
नई दिल्ली , बुधवार, 29 अक्टूबर 2014 (19:39 IST)
-सुनील जैन
 
नई दिल्ली। जानी मानी लेखिका चित्रा मुदगल ने 'मर्दानी' शब्द को साहस का पर्याय  माने जाने पर असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी राय है कि मशहूर कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पक्तियां 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' में  रानी लक्ष्‍मीबाई के साहस को 'मर्दानी' बताए जाने से वे सहमत नहीं हैं। उनका सवाल है, क्या साहस का पर्याय मर्द ही है? लेखिका का कहना है कि वे भी एक साहसी स्त्री हैं, लेकिन उन्हें साहसी स्त्री होने पर गर्व है, अपने स्त्री होने पर उन्हें गर्व है।
सुश्री मुदगल यहां तीन मूर्ति स्थित, नेहरू स्मारक व पुस्तकालय द्वारा आयोजित परिचर्चा 'स्त्रियों की इतिहास दृष्टि' में हिस्सा ले रही थीं। कार्यक्रम में उनके अलावा लेखिका व आलोचक रोहिणी अग्रवाल व लेखिका अनमिका ने भी हिस्सा लिया। सुश्री मुदगल ने कहा कि महिलाओं के साहसी होने के उपरोक्त पैमाने से वे सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा, स्त्रियों का इतिहास और इतिहास में स्त्रियां दोनों  के बारे में विचार किया जाना चाहिए, उनके अनुसार पितृ सत्तात्मक समाज में स्त्री की क्या हिस्सेदारी रही है, यह हम आप सब बखूबी जानते हैं। ऐसी  स्थिति में क्या होगी स्त्री की इतिहास दृष्टि।
 
उन्होंने कहा, 'वैसे भी इतिहास तो राजा-रजवाड़ों का होता है, प्रजा का नहीं, प्रजा को तो इतिहास मिलता ही नहीं, उसका इतिहास तो राजा की स्तुति तक ही सीमित रहा है, और इस प्रजा के परिवार में भी एक समानांतर सत्ता होती है, पितृ सत्ता, उसमें महिलाओं की भागीदारी क्या है, इसमें क्या कुछ कहने की क्या जरूरत है? उन्होंने कह, मैंने एक बार पढ़ा कि एक गांव में लकड़बघ्घा बच्चियों को उठा ले जाता था, सवाल है कि अखिर वो बच्चियों को ही क्यों ले जाता था?
 
उन्होंने कहा, केवल गुजरे जमाने में बल्कि आज भी ऐसे लोग हमें मिल जाएंगे, जिनके लिए संतान के मायने पुत्र ही होते हैं। मशहूर लेखिकाएं इस्मत चुगताई, कुर्तलिन हैदर व कृष्णा सोबती के लेखन से प्रभावित सुश्री मुदगल के उपन्यास 'आवां' को प्रतिष्ठित 'व्यास पुरस्कार' से सम्मानित किया जा चुका है। यह पुरस्कार पाने वाली वे पहली भारतीय महिला हैं। विशिष्ट साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। प्रो रोहिणी  अग्रवाल ने  परिचर्चा में कहा कि दरअसल पुरुषों ने साहित्य में स्त्री का जो रूप चित्रित किया, वह जीती जागती स्त्री से कोसों दूर है।
 
सुश्री अग्रवाल ने कहा कि उन्हें मीराबाई एक भक्त कवियत्री से ज्यादा  एक  विद्रोही कवियत्री/महिला लगती  हैं। उन्होंने राजसत्ता व पितृ सत्तात्मक  समाज के खिलाफ आवाज उठाई, समाज के तथा कथित दकियानूसी अनुशासन को मानने से इंकार  किया और अपने मन का रास्ता चुना, उन्होंने  स्व. प्रेमचंद की पत्नी शिव रानी देवी की लेखनी के बारे  में जिक्र करते हुए कहा कि उनकी लेखनी में नारी अधिकारों /नारी की शक्ति  की मजबूती दिखती थी लेकिन प्रेमचन्द के चरित्रों में स्त्री अधिकारों की ऐसी मजबूती नहीं दिखती थी, मिलती थी। (वीएनआई)

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