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शास्त्रीय संगीत की जानकारी बढ़ाता एक ब्लॉग

ब्लॉग चर्चा में इस बार वाणी पर चर्चा

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रवींद्र व्यास

WDWD
ब्लॉग की दुनिया में कई ऐसे ब्लॉगर हैं जो शास्त्रीय संगीत से लेकर पश्चिमी संगीत, लोक संगीत से लेकर सुगम संगीत की रचनाएँ पोस्ट करते हैं। इनमें नया-पुराना दोनों तरह का संगीत शामिल रहता है, लेकिन इन तमाम ब्लॉगों में कुछ ऐसे ब्लॉग भी हैं जो सुनाने के साथ संगीत की जानकारियाँ भी देते हैं। ऐसा ही एक ब्लॉग है वाणी और इसकी ब्लॉगर हैं राधिका बुधकर। इनका ब्लॉग यूँ तो शास्त्रीय संगीत और मुख्यत हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर आधारित है, लेकिन इसमें रीमिक्स से लेकर फ्यूजन और गजल पर भी बातें हैं।

राधिकाजी ने अपने ब्लॉग की शुरुआत एक आशंका से शुरू की थी लेकिन जब उन्हें अच्छा प्रतिसाद मिला तो उनका उत्साह बढ़ा। इसीलिए उन्होंने लिखा था कि 'वाणी' नामक मेरा ब्लॉग जो मैंने संगीत को समर्पित किया है, मुख्यत:शास्त्रीय संगीत को। इस ब्लॉग को शुरू करने से पहले लग रहा था कि पॉप और रॉक के ज़माने में जब शास्त्रीय संगीतकारों को इतना संघर्ष करना पड़ रहा हैं, संगीत और अपनी कला दोनों के लिए, क्या मेरा ब्लॉग कोई पढ़ेगा? क्या इस ब्लॉग में किसी की रुचि होगी ? पर जैसे अँधेरी रात में भी चंद्र और सहस्र तारागणों का प्रकाश सृष्टि को आलोकित करता है, वैसे ही सुधि वाचकों, गुणीजनों, संगीत विषय के जिज्ञासकों ने मेरे इस भ्रम को दूर कर दिया। आप सभी की इस ब्लॉग में रुचि देखकर मेरा संगीत विषय में लिखने का उत्साह दूना हुआ है।

  इसलिए वे लिखती हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत न ही इतना जटिल है, न इतना रुखा कि कोई अज्ञानवश उसका आनंद भी न उठा सके, उससे प्रेम भी न कर सके।      
जाहिर है इसी उत्साह की लहरों पर सवार होकर राधिकाजी अपनी एक पोस्ट संगीत रस सुरम में शास्त्रीय संगीत पर एक परिचयात्मक टिप्पणी में आलापचारी, राग के सुंदर विस्तार, साहित्यिक रूप से श्रेष्ठ बंदिशों, लय-ताल की बहुत ही सरल-सहज तरीके से सरल बातें करती हैं। उन्होंने संगीत पर लिखते हुए यह सावधानी बरती है कि यह बहुत अकादमिक न हो जाए और लोगों को शास्त्रीय संगीत की इस दुनिया से एक अधिक आत्मीय परिचय कराया जा सके।

इसलिए वे लिखती हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत न ही इतना जटिल है, न इतना रुखा कि कोई अज्ञानवश उसका आनंद भी न उठा सके, उससे प्रेम भी न कर सके। इसलिए यह कहने वालों से कि ‘समझ ही नहीं आता’, मेरा अनुरोध है कि जरा सुनें तो, उससे जुड़ें तो, कभी जब कुछ नया सुनने का मन हो तो किसी कलाकार का कोई राग सुनकर तो देखें, कभी उसके साथ गुनगुना कर तो देखें, थके-हारे जब घर लौटें, आँखें मूँद कर कुछ देर यह संगीत सुनकर देखें, फिर कहें आनंद नहीं आता, समझ नहीं आता। आप जब सुनेंगे, तभी तो समझेंगे और आपके समझने से पहले ही यह आपको आत्मानंद देगा, अपना बना लेगा।

कहने की जरूरत नहीं कि इस ब्लॉग में राधिकाजी ने शास्त्रीय संगीत की बहुत ही बेसिक जानकारियाँ दी हैं। इसमें संगीत की उत्पत्ति, राग, वाद्य गायन, स्वर, सुर, सात स्वरों की सरल जानकारियाँ शामिल हैं। उन्होंने ठाठ से लेकर श्रुतियों तक की जानकारी दी है। कहीं-कहीं पर इसका ऐतिहासिक लेकिन संक्षिप्त विवेचन भी है।

  बंसी की स्वर यात्रा अपनी एक पोस्ट में वे कन्हैया से लेकर सूरदास के पदों का जिक्र करती हैं और बाँसुरी को लोकप्रिय करने में पंडित पन्नालाल घोष और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के योग की भी चर्चा करती हैं।       
हालाँकि वे इसके साथ ही संगीत की स्थिति पर दुःखी भी होती हैं। वे फिल्म संगीत में आई गिरावट पर व्यथित होती हैं और चिंता व्यक्त करती हैं कि आज रीमिक्स के नाम पर संगीत को बर्बाद किया जा रहा है। उनका मानना है कि आजकल के गानों में न कविता है, न ही कोई मधुरता। बस एक तरह की चीख और चिल्लाहट है। इसी तरह वे फ्यूजन का कन्फ्यूजन शीर्षक अपनी पोस्ट में लिखती हैं कि फ्यूजन का अर्थ होता है दो संगीत धाराओं का सुंदर मिलन। दो संगीत धाराओं की खूबसूरती का मिलन लेकिन आजकल फ्यूजन के नाम पर कन्फ्यूजन है जिसमें कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा जोड़कर भानुमति का कुनबा बनाया जा रहा है।

वे कहती हैं कि कलाकार होना आसान नहीं है। सुर न सधे क्या गाऊँ मैं शीर्षक वाली पोस्ट में राधिकाजी लिखती हैं- कलाकार होना कोई सरल काम नहीं। आप चाहे लेखक हों, संगीतज्ञ हों, चित्रकार हों, उस विधा में आपको स्वयं को भुला देना होता है और एक बार जब ये कलाएँ आपको अपना बना लेती हैं, जब आप इनके आनंद में खो जाते हैं, तो दुनिया में कोई दुःख नहीं रहता, कोई मुश्किल नहीं रहती, आप योगियों, मनीषियों की तरह आत्मानंद प्राप्त करते हैं। जीवन सुंदर-सरल और मधुर हो जाता है।

वे खयाल पर सुंदर विचार करती हैं। वे मानती हैं संगीत में खयाल का अर्थ विचार या खयाल है। अपनी पोस्ट क्या खयाल है आपका में वे छोटा खयाल से लेकर बड़ा खयाल और अमीर खुसरो तक पर टिप्पणी करती हैं जबकि ध्रुपद एक समृद्ध गायन शैली में वे डागर बंधु और रमाकांत-उमाकांत गुंदेचा पर टिप्पणी करती हैं। यही नहीं वे इसके इतिहास और इसके प्रचार-प्रसार में योग देने वाले संगीतज्ञों और संगीत प्रेमियों के बारे में जानकारियाँ भी देती हैं।

इसी तरह जानें-सुनें भैरवी और गत में वे भैरवी लगने वाले कोमल स्वरों की बात करती हैं तो साथ ही राग में बंदिश और गत की सरस जानकारियाँ देती हैं। जाहिर है यह सब जानकर आप संगीत का दोगुना आनंद प्राप्त कर सकते हैं। बंसी की स्वर यात्रा अपनी एक पोस्ट में वे कन्हैया से लेकर सूरदास के पदों का जिक्र करती हैं और बाँसुरी को लोकप्रिय करने में पंडित पन्नालाल घोष और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के योग की भी चर्चा करती हैं।

लेकिन उनकी नजर सिर्फ शास्त्रीय संगीत पर ही नहीं फिल्म संगीत और गजल पर भी है। गजल पर लिखते हुए वे इसकी तीन शैलियों बनारसी, दिल्ली और लखनवी की संक्षिप्त चर्चा करती हैं। गजल के शुरुआती दौर की बात करते हुए एक तरफ वे अफजल हुसैन नगीना से लेकर बरकत अली खान की चर्चा करती हैं। और फिर गजल सम्राज्ञी बेगम अख्तर से लेकर मेहँदी हसन, कुंदनलाल सहगल, तलत मेहमूद और जगजीत सिंह की चर्चा करती हैं। गजल को बेहद लोकप्रिय करने में कामयाब रहे जगजीत सिंह पर वे ज्यादा आत्मीय तरीके से लिखती हैं।

एक पोस्ट उन्होंने आकाशवाणी को समर्पित की है। इसमें कोई दो मत नहीं कि पचास और साठ के दशक में आकाशवाणी ने शास्त्रीय संगीत का जैसा प्रचार-प्रसार किया है वैसा किसी दूसरी संस्था ने नहीं किया। आकाशवाणी ने संगीत सम्मेलनों के जरिए एक से एक दिग्गज कलाकारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाया। सिने संगीत पर लिखी एक पोस्ट में उन्होंने फिल्मी गीतों पर एक सरसरी निगाह डाली है। इसमें कोई क्रमबद्धता या कालक्रम तो नहीं है लेकिन सिने संगीत पर एक उड़ती निगाह जरूहै

कुल मिलाकर वाणी ब्लॉग शास्त्रीय संगीत के बारे में हमारी समझ और जानकारियाँ बढ़ाने में मददगार दिखाई देता है। इसका पता है-
http://surshree.blogspot.com/

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