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दिल्ली चुनाव : देखें आज ऊंट किस करवट बैठेगा?

हमें फॉलो करें दिल्ली चुनाव : देखें आज ऊंट किस करवट बैठेगा?
, शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015 (23:21 IST)
- सोनाली बोस 

दिल्ली के माहौल को समझना और समझाना इन दिनों काफी मुश्किल लग रहा है। जिस तरह से विधानसभा चुनाव को लेकर ‘आप’ और भाजपा में खासी धींगामुश्ती चल रही है, वहीं दिल्ली का आम आदमी मन ही मन जानता है कि उसे किसे और किसलिए वोट देना है, आखिर ब्रम्हास्त्र  उसी  के  हाथ  में  है। 
जहाँ शाही इमाम के बयान ने इस चुनावी दंगल को और भी मज़ेदार बना दिया है, वहीं कुछ अलग किस्म के अनुभव से दो चार होना एक अलग ही रोमांच से बार रहा है।
 
आज शाम को बाराखंबा से घर लौटते हुए एक ऑटो वाले से जब ऐसे ही सवाल किया कि चुनाव में उनका समर्थन किसे मिलेगा तो उन्होंने कहा- हम मायावती जी की पार्टी को वोट देंगे। केजरीवाल को वोट क्यों दें? अपना खर्च तो कम होता नहीं उससे। हवाई जहाज से उतरता है। उसके लोग दारू बांट रहे हैं दिल्ली में।
 
मैने कहा- लेकिन अरविन्द तो बराबरी की बात करता है? इसके जवाब में उसने उसके बाद जो कहा, उसका जवाब नहीं था- 'उस स्कूल में मेरे बच्चों को एडमिशन दिला देगा, जिसमें उसके बच्चे पढ़ते हैं? जब तक सबके लिए एक तरह के स्कूल कॉलेज, शिक्षा और अस्पताल की व्यवस्था नहीं होती, बराबरी की बात करने वाला धोखेबाज़ी है।' 
 
जब बार-बार अरविन्द केजरीवाल के बच्चों की झूठी कसम का ज़िक्र आता है, अरविन्द कहते हैं- मेरे परिवार का नाम लिया जा रहा है। मासूम बच्चों का नाम लेकर राजनीतिक फायदा लेने की गंदी राजनीति किसने की थी, अरविन्द ने ही की थी। 
 
केजरीवाल साहब फिर जब लोग पूछ रहे हैं कि झूठी कसम क्यों खाई तो इस बात के लिए शर्मिन्दा हो कि आपने राजनीतिक फायदा उठाने के लिए अपने बच्चों को भी नहीं बख्शा। दिल्ली की जनता आपसे क्या उम्मीद करें, जब आप अपने बच्चों के नहीं हुए तो अब आप क्या दिल्ली के होंगे? उनकी इन सारी बातों का जवाब बताइये क्या बनना चाहिए? 
 
उसी तरह से आज दोपहर में वैचारिक तौर पर एनजीओ विरोधी मेरे एक परिचित हैं, जो आज अचानक ही आम आदमी पार्टी की टोपी पहने मंडी हाउस में मिल गए तो मैने उनसे पूछ लिया- आप तो एनजीओ विरोधी हैं और एनजीओ पार्टी की टोपी सिर पर लिए घूम रहे हैं? तो वे थोड़े झेंपते हुए बोले- क्या करूं भाई बीजेपी के साथ जा नहीं सकता। कांग्रेस से उम्मीद नहीं है। एनजीओ पार्टी कुछ ना करें लेकिन बीजेपी को टक्कर तो दे रही है।
 
मैने पूछा- क्या बीजेपी से नफरत है आपको? उन एनजीओ विरोधी मित्र का कहना था- पापा तो बीजेपी के फैन हैं। उन्हें मोदी बहुत पसंद है लेकिन वामपंथी होने की वजह से वे बीजेपी विरोधी स्टैन्ड लिए हुए हैं और मैं भी। यदि आप अपने मित्रों के बीच में बीजेपी का पक्ष रखना चाहेंगे तो वे सुनेंगे? ऐसा क्यों नहीं करते आप? 
 
मैंने सुना है कि लेफ्ट वाले सहिष्णु होते हैं, असहमत साथियों की बात भी संयम से सुनते हैं। मित्र का कहना था, ना जाने किसने आपको यह झूठी जानकारी दी है। वहां जिसने भी उनके नीतियों की आलोचना की, उसे गद्दार घोषित कर दिया जाता है।
 
अब मेरा सवाल कि क्या हिटलर को कोसने वाले खुद के व्यवहार में इतने बड़े हिटलर हैं कि एक सिद्धान्त से आम आदमी पार्टी की राजनीति को पसंद ना करने वाले को भी आम आदमी पार्टी के प्रचार में लगा रखा है?
 
वैसे जब मैं नांगलोई के एक वोटर से मिली तो उस वोटर तुषार ने बड़ी मासूमियत से मुझे कहा कि एक सवाल मैडम भाजपा से भी बनता है और उनका सवाल था 'जो लोग 15 लाख हर एक नागरिक के खाते में डालने का वादा करके पूरे देश के गरीबों में आशा की किरण जगा देते हैं और फिर बेशर्मी से उसे चुनावी जुमला बताकर पल्लू बचाने लगते हैं। वहीं केजरीवाल को उनके बच्चों की कसम की सबसे ज़्यादा याद दिलाते हैं|'
 
और चलते चलते शाही इमाम की भी थोड़ी बात की जाए.. इन साहब का स्टैंड तो खैर कभी भी क्लियर रहा ही नहीं.. 2004 में अटल सरकार के लिए बोलना और 2014 में कांग्रेस के लिए खड़े हो जाना और अब दिल्ली विधानसभा चुनाव में 'आप’ को समर्थन का ऐलान!

अरे भई अब इन्हें कौन समझाए कि आपने आज तक जिसे भी सपोर्ट किया है, उसके पनौती के दिन चालू हो गए हैं... और उसकी हार निश्चित हो जाती है। इसीलिए बेहतरी इसी में है कि आप चुप रहें और मुस्लिम समुदाय को अपनी सोच और समझ के साथ छोड़ दीजिए.. वो अपना भला जानते हैं और समझते हैं। चलते चलते मेरे एक मित्र का ये शेर आप सबकी नज़र..  
 
'बुखारी खड़ा बाज़ार में, हाथ में लिए सपोर्ट..
उसका साथ कौन ले, जिसकी खराब रिपोर्ट..'

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