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दिवाली पर जलें आशाओं के दीप

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- गरिमा माहेश्वरी

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दिवाली का त्योहार एक ऐसा त्योहार है जिसे हर इंसान बहुत ही हर्ष और उल्लास से मनाता है। परिवार के सभी लोग जहाँ भी हों दिवाली के दिन अपने परिवारजनों से मिलने पहुँच ही जाते हैं।

भारत में ही नहीं विदेशों में बसे भारतीयों के लिए भी यह त्योहार रोशनी और खुशी से भरपूर होता है। इस दिन के लिए तो बच्चे महीनों इंतजार करते हैं। उनके लिए इस त्योहार का मतलब अच्छे कपड़े, पटाखे और मिठाइयाँ होता है।

हम सभी में से शायद ही कोई होगा जिसे इस त्योहार का इंतजार नहीं होता।

लेकिन एक बार अगर हम अपनी सोच के दायरे को अपनी दुनिया से थोड़ा दूर बढ़ाएँ तो बहुत सी ऐसी चीजें नजर आएँगी, जिनके बारे में हम सोचना ही भूल जाते हैं। हम अपनी और अपने परिवार की खुशियों में इतना खो जाते हैं कि दूसरों के दर्द, दु:ख और गम हमें नजर ही नहीं आते।

हमारे लिए दिवाली का मतलब क्या है? यह तो हम समझ ही जाते हैं लेकिन देश के ताजा हालातों के बारे में जरा सोचिए! सोचिए उन परिवारों के बारे में जिन्होंने देश में हुए विभिन्न बम कांडों में अपने परिवार के लोगों को खो दिया!

और उन लोगों का क्या जिसने अपने परिवार के एकमात्र कमाई के स्रोत को खो दिया! क्या आज भी उन लोगों के लिए दिवाली के वही मायने हैं जो हम सभी के लिए हैं।

हमारे देश में इस त्योहार को शां‍ति, समझ और विवेक के प्रतीक भगवान राम की वापसी के जश्न के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार पर जो हम पटाखे जलाकर खुश होते हैं वह बुराई के खात्मे को दर्शाता है। लेकिन क्या इस बुराई का खात्मा हो पाया है?

आज इंसान अपने स्वार्थ के चलते अपना विवेक खो चुका है। अगर इस दिवाली पर हम इस बात का निश्चय कर लें कि हम ज्यादा नहीं तो केवल अपने मन में भरी बुराइयों को खत्म कर अपने मन को शांति और विवेक से रोशन करेंगे तो तब तो दिवाली पर दीये जलाकर रोशनी फैलाने का कोई मतलब है। अन्यथा अगर दिलों में अँधेरा हो तो इस बाहरी रोशनी का क्या फायदा।

हम जिस इंसानियत के प्रतीक के वनवास से लौटने का जश्न मनाते हैं उसने हमेशा इंसानियत का ही पाठ पढ़ाया है, लेकिन अब जब हम सभी में इंसानियत का एक कतरा भी नहीं बचा तो उसके लौटने का जश्न क्यों?

इस दिवाली पर हमें प्रण करना होगा कि दीपों की रोशनी से हम अपने मन में इंसानियत के दीप भ‍ी प्रज्वलित करेंगे।

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