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मानवता के दीप जलाएँ

दीपावली पर विशेष

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अखिलेश श्रीराम बिल्लौरे

हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले त्योहारों में दीपावली को महापर्व माना जाता है। मुख्यत: पाँच दिन तक मनाया जाने वाला यह प्रमुख पर्व दरअसल 20-25 दिनों का पर्व है। इसलिए पहले स्कूली अवकाश 24 दिनों का दिया जाता था। वर्तमान में शिक्षा के व्यवसायीकरण के चलते अवकाश के दिनों की संख्‍या घटकर मात्र 4-5 दिनों या एक सप्ताह ही रह गई है। फिर भी त्योहार मनाने का आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है।

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महापर्व दीपावली के स्वागत के लिए लोग घरों की सफाई, रंगाई-पुताई करके उन्हें अनेक प्रकार से आकर्षक बनाते हैं। करीब एक माह पूर्व से ही यह कार्य शुरू हो जाता है। इसके बाद पाँच दिनों के महापर्व के लिए क्रम से घर की चौखट, आँगन, ओटलों पर दीये जलाए जाते हैं। दीये कृष्ण पक्ष की अँधेरी रातों में प्रकाश फैलाते घरों पर ऐसे प्रतीत होते हैं मानो सितारे धरती पर उतर आए हों। अनगिनत दीपों के प्रकाशवान होने से सितारों की तरह-तरह की मालाएँ जग-मग होती बड़ी ही आकर्षक प्रतीत होती है।

दीपावली महापर्व के ये दीप मानव को संदेश देते प्रतीत होते हैं। वास्तव में ये दीपक हमें बताते हैं कि किस प्रकार मैं अँधेरे को चीरकर प्रकाश फैलाने का प्रयास कर रहा हूँ। हालाँकि ये छोटा सा दीपक सूरज तो नहीं बन सकता लेकिन कुछ हद तक रोशनी फैलाकर हमारा मार्गदर्शन जरूर करता है। यानी हम भी अपने हृदय में मानवता का दीप जलाएँ और अमानुषता के अराजक रूपी स्याह अंधकार को दूर भगाएँ। असंख्य संख्या में प्रज्वलित इन दीपों का संदेश यह है कि दुनिया में भी असंख्य लोग निवास करते हैं और सभी इन दीयों की भाँति अपने हृदय में मानवता का दीपक जलाकर अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने का संकल्प लें तो सारी राम राज्य निश्चित ही आ जाएगा।

तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में कहा है-
दै‍हिक दैविक भौतिक तापा। राम राज्य काहू नहीं व्यापा।
यानी राम के राज्य में किसी प्रकार का कष्ट नहीं था चाहे वह शारीरिक हो, प्राकृतिक हो या सांसारिक। राम की प्रजा हमेशा आनंदमय रहती है।

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तरह-तरह के दीये प्रज्वलित करने का भी यही तात्पर्य है कि हम अपने मन में मानवता के साथ ही प्रेम, भाईचारे, अपनत्व, सच्चाई, मर्यादा, शांति और भक्तिरूपी दीयों को रोशन करके स्वयं के जीवन को धन्य बनाएँ। जिस प्रकार दीया स्वयं को अंधकार में रखकर दूसरों के लिए रोशनी फैलाता है, हम भी दूसरों को यथाशक्ति सहायता कर उनके जीवन में रोशनी लाने का प्रयास कर सकते हैं। यदि यह नहीं होता है तो इतना तो कर ही सकते हैं कि हमारे द्वारा कभी कोई ऐसा कार्य न हो, कभी जबान ऐसी न फिसले कि किसी का अहित हो जाए।

कहने का तात्पर्य यह कि हम यदि किसी के लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते हैं तो उसका बुरा सोचने का भी हमारा अधिकार नहीं है। प‍रहित धर्म को जीवन में अपना लिया जाए तो परम संतोष और शांति के असंख्य दीपक हमारे हृदय में प्रज्वलित हो उठेंगे।

पाँच दिनों के इस उल्लास भरे वातावरण में चहुँओर दीयों का सूक्ष्म प्रकाश अंधकार पर विजय प्राप्त करता दिखाई देता है। इनमें यदि नन्हे-मुन्नों को भी शामिल कर लिया जाए तो आनंद चार गुना बढ़ जाएगा यानी बच्चों को इन पाँच दिनों का बड़ा बेसब्री से इंतजार रहता है। ये उल्लासित बच्चे जब अपने मनपंसद दिनों में मनपसंद मस्ती और सूक्ष्म धमाकों के साधन पाते हैं तो इनका मन प्रफुल्लित हो जाता है।

  दूसरे दिन धनतेरस यानी भगवान धन्वं‍तरि का दिन। इस दिन पूरनपोली बनाई जाती है। यह बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन है। अगले दिन रूप चौदस या काली चौदस के रूप में मनाया जाता है।      
वे जंगल में अठखेलियाँ करते हिरणों की तरह उछल-कूद करने लगते हैं। ऐसे समय में हमें यह संदेश मिलता है कि हम भी अपने मनोभावों को नियंत्रित कर स्वयं के मन को बच्चों की तरह निर्विकार और निर्मल बनाएँ। फिर देखें हमारा मन, हमारा हृदय भी प्रसन्नता पाकर उछल-कूद करने लग जाएगा और हम नए उल्लास से सराबोर हो जाएँगे।

व्यंजनों का महापर्व
पाँच दिनों के इस महापर्व का नाम सुनते ही तरह-तरह के पकवान आँखों के सामने घूमने लगते हैं। पकवानों के शौकीन लोगों की समझो पौ-बारह हो जाती है। वे इन दिनों में जमकर रसास्वादन करते हैं। ऐसे लोगों के यहाँ तो खाने वाले और खिलाने वालों का ताँता लगा ही रहता है। इन ‍पाँच दिनों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं।

निमाड़ की प्राचीन परंपरा के अनुसार दीपावली का पर्व बछ बारस से ही शुरू हो जाता है। इस दिन गाय-बछड़े की पूजा की जाती है। इसे चवला बारस भी कहा जाता है। चवला एक प्रकार की फली होती है। जो मूँग के साथ ही खेतों में उगाई जाती है। इस दिन जुवार की रोटी और चवला की साग खाने का दिन माना जाता है।

दूसरे दिन धनतेरस यानी भगवान धन्वं‍तरि का दिन। इस दिन पूरनपोली बनाई जाती है। यह बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन है। अगले दिन रूप चौदस या काली चौदस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन धार्मिक परंपरा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को सूर्योदय के पूर्व स्नान कर लेना चाहिए। इस दिन भी मनपसंद व्यंजन बनाए जाते हैं।

इसके बाद आता है महालक्ष्मी पूजन यानी दीपावली या कह दें महापर्व का प्रमुख दिन। इस दिन तरह-तरह के व्यंजनों के साथ मुख्यत: गूँजे-संजोरी जरूर बनाए जाते हैं। माता लक्ष्मी और भगवान को भोग लगाकर इनका आनंद लिया जाता है। अगले दिन अन्नकूट पूजन रहता है। इस दिन भी गौवंश और भगवान कृष्ण की पूजा करके 56 प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान कृष्ण को अर्पण किए जाते हैं। अंतिम दिन यानी भाईदूज को बहनें अपने हाथों से भाई को व्यंजन बनाकर खिलाती हैं। आओ, उल्लास और उमंग से भरपूर इस त्योहार पर हम मानवता के दीप जलाकर प्रेम, भाईचारे और अपनत्व रूपी व्यंजनों का आनंद लें।

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