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लक्ष्मी के अक्षयपात्र में सब सुख हैं आपके लिए

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लाल साड़ी में लिपटी, स्वर्णाभूषणों में दमकती लक्ष्मी कमल के पुष्प पर विराजती हैं। आसपास खड़े सफेद हाथी उनका अभिवादन करते हैं। वे धन, संपदा, सौभाग्य, सौंदर्य, सत्ता, ऐश्वर्य, विलास, उर्वरता और मंगल की देवी हैं। वे अग्नि की भाँति द्युतिमान, स्वर्ण की तरह कांतिमय,सूर्य की तरह दैदीप्यमान भी हैं। कौन नहीं चाहता लक्ष्मी को? लक्ष्मी का आकर्षण प्रबल है। हर कोई चाहता है कि उसके पास धन-धान्य की प्रचुरता रहे, वैभव-विलास उसके पास आए। किंतु लक्ष्मी ठहरी चंचला! उन्हें थामे रखने के लिए कई प्रयास करने पड़ते हैं।

लक्ष्मी है तो 'श्री' है। या कहो लक्ष्मी ही हैं 'श्री'। श्री से ही है हर कार्य का शुभारंभ। एक हाथ में श्री-कलश या अक्षय-पात्र थामे लक्ष्मी दूसरे हाथ से धन बरसाती हैं। ऐसी लक्ष्मी की सभी पूजा-स्तुति करते हैं। वह भी नाना रूपों में। ताकि तरह-तरह के रूप में पूजी गई लक्ष्मी मनुष्य की सभी भौतिक कामनाओं को पूर्ण करे।

धन-धान्य, सुख-समृद्धि और खुशहाली देने वाली देवी हैं- लक्ष्मी। पारंपरिक रूप से मुख्य तौर पर लक्ष्मी को आठ रूपों में पूजा जाता है। सिद्धि की प्राप्ति कराने वाले इन अष्टलक्ष्मी स्वरूपों का हालाँकि कोई मानक तो नहीं है, लेकिन मुख्य तौर पर इन्हें निम्नलिखित नामों से पूजा जाता है :
लाल साड़ी में लिपटी, स्वर्णाभूषणों में दमकती लक्ष्मी कमल के पुष्प पर विराजती हैं। आसपास खड़े सफेद हाथी उनका अभिवादन करते हैं। वे धन, संपदा, सौभाग्य, सौंदर्य, सत्ता, ऐश्वर्य, विलास, उर्वरता और मंगल की देवी हैं।
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* भाग्य लक्ष्मी * गज लक्ष्मी * धन लक्ष्मी * धान्य लक्ष्मी * संतान लक्ष्मी * विद्या लक्ष्मी * वीर लक्ष्मी * वैभव लक्ष्मी

इसके अतिरिक्त और भी कुछ रूपों में लक्ष्मी को पूजा जाता है। लक्ष्मी के सभी रूपों के साथ मनुष्य की विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति के संदर्भ जुड़े हुए हैं और इसी आधार पर उनके नाम रखे गए हैं। आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

आदि लक्ष्मी
पौराणिक संदर्भों के अनुसार आदि लक्ष्मी जीवन देने वाली प्रथम जननी हैं। इन्हें आदि शक्ति के नाम से भी जाना जाता है। देव-दानव, मनुष्य सभी उनकी शक्तियों के समक्ष अज्ञानी हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार आदि लक्ष्मी से ही अंबिका (पार्वती)-विष्णु, लक्ष्मी-ब्रह्मा तथा सरस्वती-शिव की उत्पत्ति हुई।

बाद में आदि लक्ष्मी ने सरस्वती को ब्रह्मा से, लक्ष्मी को विष्णु से तथा अंबिका को शिव से वैवाहिक बंधन में बाँधा। फिर ये तीनों दम्पति ब्रह्मांड को मिटाने, रचने और स्थिर रखने का कार्य करने निकल पड़े। आदि शक्ति तीन गुण- रज, तम और सत्व का अविर्भाव लिए होती हैं। इनमें से रज को महालक्ष्मी, तम को महाकाली एवं सत्व को महासरस्वती के रूप में अवतरित होने की बात कही गई है।

महालक्ष्मी
आदि लक्ष्मी से अलग महालक्ष्मी के स्वरूप को समझ पाना भक्तों के लिए सरल होता है। ये प्रकृति के सौम्य तथा उदार भाव की प्रतिनिधि होती हैं। लक्ष्मी पति विष्णु संसार का पालन करते हैं, जिसमें लक्ष्मी धन, बुद्धि तथा शक्ति द्वारा योगदान देती हैं। यहूदी एवं ईसाई परंपरा के अनुसार दुनिया बनाने वाले ईश्वर 'येहवाह' की प्रज्ञा एवं वैभव का अमूर्त रूप, 'सोफिया' या 'सकीना' नामक देवियाँ भी लक्ष्मी के इस रूप से काफी समानता रखती हैं।

गज लक्ष्मी
कई चित्रों, मूर्तियों आदि में लक्ष्मी के स्वरूप पर जल वर्षा करते दो हाथी (नर, मादा) दिखाई देते हैं। ये हाथी 'दिग्गज' के आठ जोड़ों में से एक होते हैं, जो कि ब्रह्मांड के आठ कोनों पर स्थित रहकर आकाश को संभाले हुए हैं। ये लक्ष्मी के कृपापात्र हैं। गज अर्थात हाथी को शक्ति, श्री तथा राजसी वैभव से युक्त प्राणी माना गया है। गज को वर्षा करने वाले मेघों तथा उर्वरता का भी प्रतीक माना जाता है। इस तरह ये उर्वरता तथा समृद्धि की देवी लक्ष्मी के सहचर हैं। इनके साथ लक्ष्मी का स्वरूप गज लक्ष्मी नाम से जाना जाता है।

धन लक्ष्मी
भविष्य को सुखी बनाने के लिए प्रत्येक मनुष्य संपदा तथा संपत्ति की कामना करता है। इसी कामना को पूरा करती हैं- धन लक्ष्मी। पौराणिक संदर्भों के अनुसार राजकुमारी पद्मावती (लक्ष्मी का ही अवतार) से विवाह करने के लिए विष्णु को देवताओं के खजाँची कुबेर से धन उधार लेना पड़ा। कुबेर ने शर्त रख दी कि जब तक विष्णु ब्याज सहित पूरा धन नहीं चुका देते, उन्हें धरती पर ही रहना होगा।

इस शर्त से सभी देवता परेशान हो गए, क्योंकि ब्याज काफी ज्यादा था। अतः उन्होंने धन लक्ष्मी से मदद माँगी। धन लक्ष्मी ने मदद की तथा उस दिन से विष्णु को दरिद्र नारायण के नाम से भी जाना गया।

धान्य लक्ष्मी
अनाज की कमी को घर से दूर रखने वाली और रसोईघर को हमेशा भरा रखने वाली शक्ति के रूप में पूजा जाता है- धान्य लक्ष्मी को। द्रौपदी को हमेशा भोजन से भरा रहने वाला पात्र धान्य लक्ष्मी ने ही आशीर्वाद स्वरूप दिया था। धान्य लक्ष्मी हर वर्ग, वर्ण तथा स्तर के मनुष्य की क्षुधा पूर्ति करती हैं। वे उन लोगों से प्रसन्न रहती हैं, जो अन्न का सम्मान करते हैं और भोजन को आदर देकर ग्रहण करते हैं।

राज लक्ष्मी
राजयोग नसीब से मिलता है, ऐसा लोगों का मानना है। लगभग हर धर्म में राजसी वैभव प्रदान करने वाली एक देवी होती हैं। इसी संदर्भ में हिन्दू मान्यताओं के अनुसार राज लक्ष्मी को पूजा जाता है। राज लक्ष्मी किसी भी व्यक्ति को शक्ति, वैभव तथा समस्त राजसी सुखों का मालिक बनाती हैं।

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गृह लक्ष्मी
गृह लक्ष्मी का निवास हर घर में होता है। ये मकान में प्रेम तथा जीवंतता का संचार कर उसे घर बनाती हैं। इनकी अनुपस्थिति में घर कलह, झगड़ों, निराशा आदि से भर जाता है। गृहस्वामिनी को इनका प्रतीक माना जाता है। इसीलिए बहू गृहप्रवेश के समय धान के कटोरे को पैर से स्पर्श कर या कुंकू से चरण चिह्न बनाकर प्रवेश करती है। उसके ऐसा करने को समृद्धि के आने तथा बुराइयों के घर से विदा हो जाने का प्रतीक माना जाता है। जहाँ गृहस्वामिनी की कद्र न हो, गृह लक्ष्मी उस घर को त्याग देती हैं।

सौंदर्य लक्ष्मी
ब्रह्मा की पुत्री 'रति' दिखने में बेहद साधारण थी। कोई भी पुरुष, देवता या दानव उसकी ओर आकर्षित नहीं होता था। अतः उसने सौंदर्य लक्ष्मी से मदद की गुहार लगाई। सौंदर्य लक्ष्मी ने उसे वरदान स्वरूप सोलह श्रृंगार की जानकारी दी, जिन्हें धारण करते ही रति तीनों लोकों में सबसे सुंदर युवती बन गई तथा प्रेम के देवता 'मन्मथ' का हृदय जीतने में सफल हुई। इस प्रकार सौंदर्य लक्ष्मी सुंदरता का वरदान देने वाली है।
बच्चे के जन्म के 6 दिन बाद भाग्य लक्ष्मी स्वयं आकर बच्चे के भाल (माथे) पर उसका भाग्य लिखकर जाती हैं। इसी मान्यता के चलते भारत के कुछ क्षेत्रों में (खासकर महाराष्ट्र में) उस स्थान को जहाँ नवजात सोया होता है, सफाई कर, रंगोली से सजाकर रखा जाता है।
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भाग्य लक्ष्मी
ऐसी मान्यता है कि बच्चे के जन्म के 6 दिन बाद भाग्य लक्ष्मी स्वयं आकर बच्चे के भाल (माथे) पर उसका भाग्य लिखकर जाती हैं। इसी मान्यता के चलते भारत के कुछ क्षेत्रों में (खासकर महाराष्ट्र में) उस स्थान को जहाँ नवजात सोया होता है, सफाई कर, रंगोली से सजाकर रखा जाता है। साथ ही वहाँ स्लेट-चॉक या कॉपी-पेन भी रखा जाता है, ताकि भाग्य लक्ष्मी बच्चे का भाग्य लिख सके। भाग्य लक्ष्मी मनुष्य की किस्मत बदल सकती हैं। वे राजा को रंक तथा रंक को राजा बना सकती हैं।

संतान लक्ष्मी
प्राणियों को उर्वरता तथा वंश वृद्धि का वरदान देती हैं- संतान लक्ष्मी। संतान लक्ष्मी स्त्री को सृजन का वरदान देती हैं तथा छोटे बच्चों की बीमारियों से रक्षा करती हैं। बंगाल में बिल्लियों अथवा मादा शेर को इनका प्रतीक माना जाता है, क्योंकि ये दोनों ही अपने बच्चों का पालन-पोषण अकेले के बल पर करती हैं।

वीर लक्ष्मी
जीवन की हर परिस्थिति या शत्रु का साहस से सामना करने का बल और तेज ये प्रदान करती हैं। इन्हें वैष्णोदेवी के नाम से भी पूजा जाता है। ये शेर की सवारी करती हैं तथा माँ दुर्गा के समान अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रहती हैं।

गौ लक्ष्मी
गाय को भारतीय समाज में माँ का दर्जा दिया गया है, क्योंकि एक माँ की तरह ही वह भी निस्वार्थ भाव से मनुष्य के पालन-पोषण के लिए ढेर सारी सुविधाएँ जुटाती हैं। इसलिए इन्हें गौ लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। पुराणों में कामधेनु का भी वर्णन है, जो प्राणीमात्र की समस्त इच्छाएँ पूर्ण करती हैं।

विद्या लक्ष्मी
ज्ञान को धन में बदलने का वरदान देने वाली देवी हैं विद्या लक्ष्मी। सरस्वती की ही तरह ये भी विद्या तथा कलाओं की देवी हैं। जहाँ सरस्वती शुद्ध वैचारिक ज्ञान देने वाली हैं, विद्या लक्ष्मी ज्ञान द्वारा भौतिक समृद्धि के रास्ते खोलती हैं।

आरोग्य लक्ष्मी
स्वास्थ्य जीवन का सबसे बड़ा वरदान है और स्वास्थ्य सहित संपन्ना जीवन जीने की कामना से पूजा जाता है 'आरोग्य लक्ष्मी' को। समुद्र मंथन में से विष्णु के अवतार तथा आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि के साथ निकली आरोग्य लक्ष्मी जीवन को स्वस्थ तथा सुखी रहने का वरदान देती हैं।

कड़क लक्ष्मी
लक्ष्मी का यह रूप अधिकांशतः ग्रामीण इलाकों में पूजा जाता है। जब भी समाज में कहीं किसी स्त्री के साथ दुर्व्यवहार होता है, कड़क लक्ष्मी समाज को अपना कठोर स्वरूप दिखाती हैं एवं लोगों को व्याधियों तथा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में भक्त उनकी पूजा-पाठ कर तथा कठोर नियमों का पालन कर (जैसे आग पर चलना) उनका क्रोध शांत करते हैं एवं अपनी गलती के लिए माफी माँगकर उसे न दोहराने का संकल्प लेते हैं।

इस प्रकार लक्ष्मी के ये सारे स्वरूप जीव मात्र द्वारा सुख-समृद्धि की कामना से पूजे जाते हैं। ये सभी स्वरूप नम्रता, धैर्य, मेहनत, बुद्धिमत्ता, सभ्यता, शांति आदि गुणों को अपने आचरण में उतारने की सीख देते हैं। वे बताते हैं कि छल-कपट, बुराई, बैर, द्वेष तथा अहंकार जैसी बुराइयों को पालने वाले मनुष्य के लिए उन्नति के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं और लक्ष्मी भी ऐसे लोगों के पास नहीं आती। अतः लक्ष्मी का सामीप्य चाहिए तो उपरोक्त गुणों को आचरण में उतारिए। (नायिका ब्यूरो)

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