इसी तरह तेज आवाज के पटाखे चला कर खुश होने वाले ये सोच भी नहीं सकते कि इस ध्वनि प्रदूषण के परिणाम कितने घातक हो सकते हैं। श्रवण क्षमता से यह शोर ज्यादा होने पर कान के पर्दों को भी नुकसान पहुँचता है। पटाखे चलाते वक्त हाथ में फूट जाने या आग लग जानेसे हर वर्ष कितनी ही जानें जाती हैं और दीपावली का उजाला अँधेरे में बदल जाता है। हालाँकि आज पर्यावरण और लोगों को नुकसान एवं बीमारी से बचाने के लिए आतिशबाजी से होने वाले नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन सभी को सजग बनाने के लिए प्रयास तो हर घर और विद्यालयों जैसे छोटे पैमाने पर होना चाहिए। विभिन्न धर्मगुरु भी यदि ऐसा आदेशित एवं उपदेशित करें तो बहुत सजगता आ सकती है। इसके अलावा आतिशबाजी चलाते समय कुछ सावधानियाँ अवश्य रखें- * आतिशबाजी चलाते वक्त सूती कपड़े ही पहनें। पैरों में चप्पल, जहाँ तक हो सके जूते पहनें, ताकि अधजले एवं गर्म पटाखे से पैर ना जले।
* बच्चों को पटाखे जेब में भरकर ना घूमने दें। पटाखों के बक्से को गर्मी पैदा करने वाली चीजों के करीब भी न रखें। इसमें विस्फोट होने की आशंका रहती है।
* बच्चों को अधजले पटाखे बीनने की छूट बिलकुल न दें।
* बम को हाथ में लेकर चलाने की गलती ना करें और ना ही उसका कागज निकालकर बत्ती निकालने की चेष्टा करें।
* फुलझड़ी चलाते वक्त हाथों को बहुत घुमाएँ नहीं। इसकी छोटी-सी चिंगारी भी बड़ा हादसा कर सकती है।
* पटाखों को तेज आवाज के लिए टिन के डिब्बों या मटके में रखकर ना चलाएँ। धमाके के साथ इनके उड़े हुए टुकड़ों से किसी को भी चोट (जख्म) लग सकती है।
* रॉकेट चलाते वक्त भी इसका सिरा ऊपर की ओर ही रखें। वरना इस खतरनाक पटाखे के कारण सबसे ज्यादा दुर्घटनाएँ होती हैं।
* आतिशबाजी करने के लिए बेहतर होगा कि एक समूह बनाकर कॉलोनी या मोहल्ले के खुले मैदान में एकत्र हों और आतिशबाजी का आनंद उठाएँ। इससे कम पटाखों में आप ज्यादा से ज्यादा मजा ले पाएँगे।
* सड़क पर निकलते वाहनों स्कूटर, मोटरसाइकल सवार पर पटाखे ना छोड़ें। निरीह पशुओं की पूँछ पर भी पटाखे बाँधकर न चलाएँ। मस्ती में की गई ऐसी हरकत बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।
* आतिशबाजी करने की जगह पर पास ही पानी से भरी एक-दो बाल्टी अवश्य रखें।
बस तो इस बार आतिशबाजी का आनंद लेकर अपने पर्यावरण और सभी के प्रति सचेत रहते हुए दीपावली का दुगुना मजा उठाएँ।