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सावधानी से करें आतिशबाजी

बचाएँ पर्यावरण और खुद को

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- मीनू

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दीपावली का पावन पर्व सभी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। सभी लक्ष्मी की आराधना कर उसकी प्राप्ति की आशा करते हैं। इस त्योहार में उमंग और उत्साह के साथ ही आता है पटाखे चलाने का अनूठा उत्साह, पर अक्सर उत्साह में लोग भूल जाते हैं कि पटाखों की रोशनी जहाँ मन को खुशियों से लवरेज कर देती है, वहीं इससे होने वाली हानियाँ खुशी से ज्यादा नुकसान पहुँचाती हैं।

इस पर्व को धूमधाम से मनाने के लिए करोड़ों रुपए के पटाखों का विक्रय होता है और कुछ ही पलों में हम पटाखें जला कर इस धन का अपव्यय कर डालते हैं। सिर्फ खुशी के प्रदर्शन के लिए इतने सारे पटाखों की आवश्यकता नहीं होती। नन्हीं-नन्हीं झिलमिलाती फुलझड़ियों एवं रोशनी देने वाले छोटे-छोटे पटाखे भी मन में उमंग पैदा कर सकते हैं। वैभव प्रदर्शन और एक-दूसरे की होड़ में जितने धन का अपव्यय होता है, उसका सदुपयोग किसी विकास कार्य में किया जाए तो कितने ही लोगों का जीवन सँवर जाए।

आर्थिक पहलू के साथ-साथ पटाखों को चलाने से पर्यावरण को भी बहुत हानि पहुँचती है। इनसे निकले जहरीले धुएँ से पूरा वातावरण प्रदूषित हो जाता है। ये धुआँ श्वसन के जरिए हमारे फेफड़ों में जमकर हमें बीमार कर देता है। पटाखों के कारण कई मूक पशु पक्षी मारे जाते हैं, सो अलग।
दीपावली का पावन पर्व सभी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। सभी लक्ष्मी की आराधना कर उसकी प्राप्ति की आशा करते हैं। इस त्योहार में उमंग और उत्साह के साथ ही आता है पटाखे चलाने का अनूठा उत्साह, पर अक्सर उत्साह में लोग भूल जाते हैं कि
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इसी तरह तेज आवाज के पटाखे चला कर खुश होने वाले ये सोच भी नहीं सकते कि इस ध्वनि प्रदूषण के परिणाम कितने घातक हो सकते हैं। श्रवण क्षमता से यह शोर ज्यादा होने पर कान के पर्दों को भी नुकसान पहुँचता है। पटाखे चलाते वक्त हाथ में फूट जाने या आग लग जानेसे हर वर्ष कितनी ही जानें जाती हैं और दीपावली का उजाला अँधेरे में बदल जाता है।

हालाँकि आज पर्यावरण और लोगों को नुकसान एवं बीमारी से बचाने के लिए आतिशबाजी से होने वाले नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन सभी को सजग बनाने के लिए प्रयास तो हर घर और विद्यालयों जैसे छोटे पैमाने पर होना चाहिए। विभिन्न धर्मगुरु भी यदि ऐसा आदेशित एवं उपदेशित करें तो बहुत सजगता आ सकती है।

इसके अलावा आतिशबाजी चलाते समय कुछ सावधानियाँ अवश्य रखें-

* आतिशबाजी चलाते वक्त सूती कपड़े ही पहनें। पैरों में चप्पल, जहाँ तक हो सके जूते पहनें, ताकि अधजले एवं गर्म पटाखे से पैर ना जले।

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* बच्चों को पटाखे जेब में भरकर ना घूमने दें। पटाखों के बक्से को गर्मी पैदा करने वाली चीजों के करीब भी न रखें। इसमें विस्फोट होने की आशंका रहती है।

* बच्चों को अधजले पटाखे बीनने की छूट बिलकुल न दें।

* बम को हाथ में लेकर चलाने की गलती ना करें और ना ही उसका कागज निकालकर बत्ती निकालने की चेष्टा करें।

* फुलझड़ी चलाते वक्त हाथों को बहुत घुमाएँ नहीं। इसकी छोटी-सी चिंगारी भी बड़ा हादसा कर सकती है।

* पटाखों को तेज आवाज के लिए टिन के डिब्बों या मटके में रखकर ना चलाएँ। धमाके के साथ इनके उड़े हुए टुकड़ों से किसी को भी चोट (जख्म) लग सकती है।

* रॉकेट चलाते वक्त भी इसका सिरा ऊपर की ओर ही रखें। वरना इस खतरनाक पटाखे के कारण सबसे ज्यादा दुर्घटनाएँ होती हैं।

* आतिशबाजी करने के लिए बेहतर होगा कि एक समूह बनाकर कॉलोनी या मोहल्ले के खुले मैदान में एकत्र हों और आतिशबाजी का आनंद उठाएँ। इससे कम पटाखों में आप ज्यादा से ज्यादा मजा ले पाएँगे।

* सड़क पर निकलते वाहनों स्कूटर, मोटरसाइकल सवार पर पटाखे ना छोड़ें। निरीह पशुओं की पूँछ पर भी पटाखे बाँधकर न चलाएँ। मस्ती में की गई ऐसी हरकत बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।

* आतिशबाजी करने की जगह पर पास ही पानी से भरी एक-दो बाल्टी अवश्य रखें।

बस तो इस बार आतिशबाजी का आनंद लेकर अपने पर्यावरण और सभी के प्रति सचेत रहते हुए दीपावली का दुगुना मजा उठाएँ।

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