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अशराह की रातों में कर रहे रतजगा

रमजान माह में इबादत का सिलसिला जारी

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पाक माह रमजान में इबादत का सिलसिला बदस्तुर चल रहा है। मस्जिदों और घरों में ऐसे धर्मालु भी है जिन्होंने दुनियादारी को छोड़कर बस इबादत, इबादत और इबादत में ही अशराह की रातें और दिन गुजार रहे हैं। धर्म के मर्म को जान लिया है, जो भी है यहीं रहेगा, साथ जाएगा तो केवल सद्कर्म, धर्म, इसी से जन्नत नशी होगी। बाहरी दुनिया से कोई वास्ता नहीं है।

रमजान में रोजा, सेहरी, इफ्तारी, नमाज (पाँचों वक्त की) का पालन सभी कर रहे हैं। सभी जन इबादत में तल्लीन हैं। मस्जिद में तरावीह का आयोजन चल रहा है। रमजान के अंतिम दस दिन इबादत का विशेष दौर रहता है। रतजगा कर इबादत की जाती है। इसी श्रृंखला में सैकड़ों धर्मालुजनों का एक ही मकसद है 'खुदा' को याद करना।

ऐतेकाफ का मकसद : निजात का अशराह शुरू होने के साथ ही मुस्लिम धर्मालुजन विशेष इबादत में तल्लीन हो जाते हैं। कुछ पुरुष मस्जिद में ही है, बाहरी दुनिया, रिश्ता, नातेदारी सब कुछ छोड़कर दस दिनों तक बस इबादत ही करना। पूरी रात इबादत में गुजरती है। तन से, मन से, वचन से, विचार से सब में केवल खुदा ही। खुदा के अलावा दूसरा कोई नाम नहीं।

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एक-दूसरे पर पड़ती नहीं छाया : पुरुष वर्ग मस्जिद में ऐसे स्थानों पर हैं, जहाँ बाहरी शोरगुल नहीं आए, उनकी इबादत में खलल नहीं पड़े, ऐसे 'एतेकाफ' पर किसी महिला की छाया तक नहीं पड़ती है। वहीं महिलाएँ ऐसे कमरे में रहती है, जहाँ पर पुरुष की छाया नहीं पड़े।

क्या होती है चर्या : मस्जिद में पुरुष हो या घर में महिला, चर्या एक-सी होती है। इफ्तारी के बाद मगरीब की नमाज पढ़ना। इबादत करना, ईशा की नमाज पढ़ना। तरावीह सुनना। इसके बाद इबादत में मशगुल हो जाना। रात 12 बजे बाद 'तेहज्जूद' की नमाज पढ़ना। फिर इबादत करना।

सभी मस्जिदों हैं ऐतेका : मस्जिदों में सैकड़ों लोग ऐतेकाफ अशराह में निजात के लिए विशेष इबादत कर रहे हैं। हर मस्जिद में दो-पाँच-दस ऐतेकाफ है, जो कि इबादत में डूबे हैं। मस्जिदों पर आकर्षक विद्युत सज्जा की गई है।

बना रहे भाईचारा : इबादत में जाने-अनजाने में हुए गुनाहों के लिए माफी माँगी जाती है। माफी न केवल अपने लिए अपितु सभी के लिए। इबादत में दुआ की जाती है। घर में, गली में, मोहल्ले में, शहर में, जिले में, प्रदेश में, देश में, विश्व में शांति रहे, अमन-चैन रहे और बना रहे भाईचारा।

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