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गैर मुस्लिम भी रख रहे हैं रोजा

सेहरी और इफ्तार से मिलता है आत्मिक सुख

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रमजान माह मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए निहायत ही पाक माना जाता है। पूरे माह मोमिन रोजा रख अल्लाहताला से जहान की सलामति की दुआ करते हैं। मुस्लिम धर्म में रोजा बालिग पर फर्ज है। मुस्लिम धर्मावलंबी रोजा रख अपने इस फर्ज को अदा भी करते हैं। किंतु कुछ ऐसे लोग भी हैं जो न तो मुस्लिम हैं न ही रोजा उन पर फर्ज। फिर भी ये लोग उसी शिद्दत से रोजा रखते हैं जिस शिद्दत से मोमिन भाई। रोजा रखने के लिए इन पर न तो कोई दबाव है न ही कोई मजबूरी। रोजा रखकर खुदा की इबादत करना ही इनका एकमात्र मकसद है।

कई गैर मुस्लिम लोग ऐसे भी हैं पूरे रमजान माह में रोजे रख रहे हैं। वे बताते हैं कि रोजा रखना हमारे परिवार की परंपरा है, जिसका निर्वाह हमारी तीसरी पीढ़ी कर रही है। रोजे के प्रति परिवार की गहरी आस्था है। वे पाँचों वक्त नमाज के वक्त खुदा से दुआ करता हैं। और कहते हैं कि ये दुआओं का ही असर है कि उनका परिवार खुशहाल जिंदगी गुजार रहा है। उनके पास हिन्दी भाषा में कुरआन शरीफ है, जिसका वे नियमित पाठ करता हैं। सुबह सेहरी और शाम को इफ्तार का अलग ही आत्मिक सुख मिलता है।

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एक अन्य के अनुसार उनकी दादी रोजा रखती थीं। इस परंपरा को पिताजी ने निभाया और वर्तमान में वे भी रोजा रख रहे हैं। रमजान के दौरान पूरा परिवार सहयोग करता है। वे फजर और मगरीब के साथ कुरआन शरीफ का एक पाठ रोज पढ़ने के साथ-साथ दूसरे शहर में होने पर मस्जिद में नमाज अदा करते हैं।

बड़ी संख्या में गैर मुस्लिमभाई हैं, जो सालों से रोजा रखते चले आ रहे हैं। इन लोगों ने बताया कि वे अंदरूनी इबादत में विश्वास रखते हैं। ऐसे लोग जनता से रूबरू भी नहीं होना चाहते। वे तो बस चुपचाप उस परवरदिगार के सजदे में सर झुकाए खड़े हैं जो पूरे जहाँ का मालिक है।

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