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तीस दिन के बाद भी कर सकते हैं रोजा

- मौलाना वहीदुद्दीन

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इस्लाम में रमजान का बहुत ही महत्व है। यह 30 दिनों तक चलने वाला ऐसा त्योहार है जिसमें सभी उम्र के लोग पूरी शिद्दत से हिस्सा लेते हैं। यह त्योहार भले ही तीस दिनों तक चले लेकिन इसका इंतजार लोग लंबे समय से करने लगते हैं।

रमजान के लिए तो वैसे 30 दिनों का समय ही निर्धारित है लेकिन इसे 6 अतिरिक्त दिनों तक किया जा सकता है, यद्यपि यह अनिवार्य नहीं है लेकिन इन छह अतिरिक्त दिनों का अर्थ यह है कि यदि कोई किसी कारणवश रोजा न रख पाया हो तो उन्हें अगले छह दिनों में पूरा कर लें। रमजान का समय इस्लाम में सदाशयता के लिए जाना जाता है। इस समय इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों को इस त्योहार को काफी सादगी से मनाए जाने के लिए कहा जाता है।

सादगी से मनाए जाने का मतलब यह है कि रमजान के दौरान वे कोई ऐसा काम न करे जिससे कि अहंकार या धूमधाम का अहसास हो। अभी सुनने में आया है कि रमजान के दौरान रोजे रखने वालों में युवाओं की संख्या बढ़ी है। इसका कारण शायद यह है कि जब पूरे हिंदुस्तान की आबादी में युवाओं की संख्या बढ़ी है तो स्वाभाविक रूप से यहाँ भी युवाओं की संख्या बढ़ी है।

यह सही नहीं कहा जा सकता है कि युवाओं का रुझान अभी रमजान की तरफ बढ़ा है। यह ऐसा त्योहार है जिसे हमेशा से ही लोग मनाते थे और बड़ी संख्या में मनाते थे। उम्र से इसका कोई खास ताल्लुक कभी नहीं रहा है। आम लोगों में यह धारणा है कि रमजान स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। इसका कारण यह है रमजान रखने वाले लोग उस समय में अपने सामर्थ्य के अनुसार अच्छा भोजन करते हैं।

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दूसरी बात यह है कि दिन में चूँकि वे खाते नहीं हैं इसलिए भर दिन के उपवास के बाद संयमित भोजन करते हैं। तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर कोई भी इंसान भर पेट खाने से थोड़ा कम खाए तो स्वभाविक रूप से उनका स्वास्थ्य बेहतर होगा।

हालाँकि रोजे के दौरान स्वास्थ्य बेहतर हो जाने के पीछे एक बहुत ही धार्मिक कारण है। इस्लाम में कहा गया है कि अगर रोजे के दौरान डकार आ जाय तो उस दिन रोजा नहीं माना जा सकता। इसे ध्यान में रखकर कोई भी रोजेदार इतना खाना नहीं खाता कि रोजा भंग हो। इसलिए यह स्वाभाविक है कि महीने भर के रोजा के बाद लोगों का स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है।

(लेखक मुस्लिम विचारक हैं )

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