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बचे रोजों का हिसाब-किताब

रमजानुल मुबारक

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माह-ए-रमजान पर तीसरे जुमे को देश की मस्जिदों में नमाज अदा की गई। इसके लिए मस्जिदों में सफाई, जल और बिजली के पर्याप्त इंतजाम किए जा रहे हैं। इधर, रमजान माह के आधे रोजे पूरे हो जाने के बाद रोजों की गिनती बचे हुए रोजों से की जा रही है।

12 अगस्त से शुरू हुए रमजान माह का तीसरा जुमा अकीदत के साथ मनाया गया। इस मौके पर मस्जिदों में खास दुआएँ भी हुई। जुमा की खास नमाज में शामिल होने वाले नमाजियों की तादाद को देखते हुए मस्जिदों में अतिरिक्त इंतजाम भी किए गए। अधिकतर मस्जिदों में तरावीह में पहला कुरआन पाक 5, 7 और 14 दिन में खत्म हो चुका है। अब लोगों ने ईद की तैयारियाँ भी शुरू कर दी हैं। जैसे-जैसे ईद करीब आती जा रही है। बाजारों में खरीददारों की भीड़ बढ़ती जा रही है।

हम किसी से दोस्ती करें तो वह भी खुदा की रजा के लिए करे। यह महीना बड़ा ही बरकतों व रहमतों वाला महीना है, हमें इस महीने की कद्र करनी चाहिए। इस महीने में जो भी बंदा नमाज अदा करता है, वह सब काम अल्लाह की रजा के लिए करता है। रमजान शरीफ की विशेष नमाज व कुरान शरीफ की आयतों का अनुवाद करते हुए हाफिज साहब ने कही।

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उन्होंने कहा कि ईमान का तकाजा यही है कि अल्लाह की रजा के लिए हर काम करो। रमजानुल मुबारक की मुबारकबाद पेश करते हुए उन्होंने कहा कि हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए, जिससे अल्लाह की नाराजगी का सामना करना पड़े।

उन्होंने कहा कि जब हम मोमीन भाई से मिलते हैं और अस्सलामो अलैकुम कहते हैं तो उसका मतलब होता है कि अल्लाह की तुम पर सलामती हो। इसके जवाब में वालेकुम अस्सलाम कहा जाता है तब उसका मतलब होता है कि अल्लाह की तुम पर भी सलामती हो।

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