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माहे रमज़ान

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अजीज अंसारी

सोमवार की रात चाँद दिखने के साथ ही विशेष नमाज़ तरावीह शुरू हो जाएगी। पूरी दुनिया के मुसलमान इस महीने का बहुत एहतेराम करते हैं। अपने आप को हर तरह की बुराइयों से बचाते हैं और अपना ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त क़ुरान शरीफ़ की तिलावत करने और नमाज़ें पढ़ने में गुज़ारते हैं।

  अपने आप को हर बुराई से बचाना है। बदन के जितने ज़रूरी हिस्से हैं उन्हें बुराइयों से रोकना है। ज़ुबान से बुरी बात नहीं कहनी है। हाथों से किसी को मारना नहीं है, चोरी और दूसरे बुरे काम नहीं करना हैं।      
मंगलवार से रोज़े शुरू हो जाएँगे। रोज़ा रखना हर बालिग़ (अड्ल्ट) इंसान पर फ़र्ज़ है। रोज़ा रखने के लिए सुबह से बहुत पहले क़रीब चार-साढ़े चार बजे तक कुछ खा-पी लिया जाता है जिसे सहरी कहते हैं। इसके बाद रोज़ा रखने की नियत कर ली जाती है। नियत कर लेने के बाद आपका रोज़ा शुरू हो जाता है। अब आप सारे ज़रूरी और जाइज़ काम कर सकते हैं सिवाए खाने और पीने के। रोज़ा रख लेने के बाद भी ज़िन्दगी हस्बे-मामूल चलती रहती है। जिसका जो काम है वो उसे करना ही है।

साथ ही अपने आप को हर बुराई से बचाना है। बदन के जितने ज़रूरी हिस्से हैं उन्हें बुराइयों से रोकना है। ज़ुबान से बुरी बात नहीं कहनी है। हाथों से किसी को मारना नहीं है, चोरी और दूसरे बुरे काम नहीं करना हैं। पैरों को बुराइयों की तरफ़ जाने से रोकना हैं। आँखों से बुराई देखना नही है। इसी तरह दिल-ओ-दिमाग़ सबको बुराइयों से दूर रखकर अपने आपको ख़ुदा की याद में मशग़ूल रखना है।

शाम को जब मग़रिब की अज़ान हो तब इफ़्तार करना है। पूरे महीने हर रोज़ादार का यही मामूल बन जाता है। रात में तरावीह, सुबह होने से काफ़ी पहले इफ़्तार और फिर मग़रिब की अज़ान के साथ इफ़्तार।

अपने रबके हुज़ूर रखता है
रोज़ा इंसान को ज़माने में
हर बुराई से दूर रखता है

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