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रमजान : बाजार की रौनक का महीना

बाजारों में उमड़ रही खाने की भीड़

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बाजार और आधुनिकता ने रमजान पर भी अपना प्रभाव जमा लिया है। दीवाली और रक्षाबंधन के अवसर पर कोरियर के जरिए मिठाई और राखी भेजने की प्रथा का ईद और रमजान तक विस्तार हो चुका है। यही नहीं, नवरात्र स्पेशल थाली की तरह रमजान में इफ्तार पैक भी बाजार में मिलने लगे हैं। रमजान ज्यादातर मुसलमानों के लिए इबादत का महीना होता है लेकिन निम्न मध्य वर्ग के लिए कमाई का भी यही महीना होता है।

इन दिनों बाजारों में रमजान की रौनक देखते ही बनती है। इफ्तार के बाद यहाँ खाने का सिलसिला शुरू होता है और आधी रात यानि सेहरी तक चलता रहता है। कुल्चे नहारी और शीरमाल कबाब जैसी पारंपरिक डिश के साथ नए-नए व्यंजन भी रमजान में खूब मिलते हैं जो आम दिनों में नहीं मिलते। गिलाफी कुल्चे, पेशावरी रोटी, बाकर खानी, शाही टुकड़े, खीर-फीरीनी और भुने मुर्गे की दर्जनों वैरायटी रमजान के दिनों का खास आकर्षण हैं।

इसमें बिरयानी तो सदाबहार है। बाजारों में उमड़ रही खाने की भीड़ से यह ज्ञात होता है क्योंकि रमजान के आखिरी दिनों में ईद की तैयारी का इतना काम होता है कि घर पर खाना पकाने का टाइम ही नहीं निकलता। वैसे भी अब इफ्तारी के लिए बाजार से सामान खरीदने को बुरा तसव्वुर नहीं कहा जा सकता।

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रमजान में नहारी-नान और करीम के मटन और चिकन बर्रे के अलावा पुरानी दिल्ली में हैदराबादी बिरयानी का भी लुत्फ लिया जा सकता है। जामा मस्जिद के आस-पास की गलियों में रमजान की रौनक बढ़ चुकी है। आधी रात तक दुकानें खुलनी शुरू हो गई हैं।

रमजान के आखिरी अशरे यानि अंतिम दस दिनों में इफ्तार के बाद से सहरी तक दुकानें खुलने लगी हैं। ईद से एक हफ्ता पहले तो दिन में भी दुकानें खुलेंगी और रात में भी। दिन में बाहर के खरीददार यहाँ सामान खरीदते मिलते हैं लेकिन खरीददारी रात को ही देखने वाली होती है जब पूरी दिल्ली की मुस्लिम औरतें इन गलियों में खरीददारी कर रही होती हैं।

कपड़े-लत्ते और जेवर की दुकानों से लेकर खाना पकाने के मसाले भी रमजान की रातों में खूब बिकते हैं। कुछ लोग तो ईद की ही नहीं बल्कि पूरे साल की खरीददारी इन्हीं रमजान की रातों में करते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि रमजान के मुबारक महीने में खरीदी गई हर चीज में बरकत ज्यादा होती है। रात भर बिरयानी, सीख कबाब, नहारी और नान की खुशबू से तर दिल्ली की इन गलियों की रौनक का कोई मुकाबला नहीं है।

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लेकिन अलीगढ़ के सर सैयद नगर में रमजान जितनी सादगी से आते हैं उतनी सादगी से शायद दुनिया के किसी हिस्से में नहीं आते। इफ्तार के लिए न तो गोला दगता है और न ही सायरन बजता है। सेहरी के लिए भी कोई नाच गाती बजाती पार्टी नहीं गुजरती। बताते हैं कि पीएचडी किए हुए मुसलमानों की इतनी बड़ी आबादी पूरी दुनिया में कहीं नहीं है जितनी सर सैयद नगर में। शायद यही वजह है कि लोग यहाँ एक-दूसरे को मोबाइल पर मैसेज भेजकर मुबारक बाद देते हैं और सेहरी-इफ्तार घड़ी की सुई देखकर। शिया मुसलमानों का भारत का सबसे बड़ा मदरसा भी यहीं से थोड़ी दूर पर है लेकिन वहाँ भी लखनऊ के शिया प्रभाव वाले चौक या नख्खास जैसी रौनक नहीं दिखती।

हैदराबाद के चारमीनार और मुंबई में भिंडी बाजार, मोहम्मद अली रोड पर कबाब पराँठे की खुशबू रमजान के होने का अहसास कराए बिना नहीं रहती। मुंबई के दर्जनों होटलों ने अपने यहाँ रमजान स्पेशल के बोर्ड लगा रखे हैं। जैसे लखनऊ के नौशियान रेस्तराँ में सिर्फ रमजान में ही स्पेशल कुल्चे नहारी मिलती है। बाकी पूरे साल यह रेस्तराँ यह डिश तैयार नहीं करता। मुंबई के मीरा रोड इलाके में भी हर तरफ शाम होते ही रमजान में तरह-तरह के पकवानों की खुशबू आने लगती है लेकिन यहाँ भी पैकेट कल्चर हावी हो चुका है। इफ्तार के लिए खजूर और जूस के साथ चिप्स के छोटे पैकेट को मिलाकर इफ्तार पैक बाजार में मौजूद है। लखनऊ की इंटीग्रल यूनिवर्सिटी और लखनऊ विश्वविद्यालय के आस-पास भी छात्रों के लिए बेहतर क्वॉलिटी के इफ्तार पैक बिक रहे हैं।

वैश्वीकरण का एक फायदा यह भी हुआ है कि पिछले पाँच-छह सालों में खजूर की क्वॉलिटी में जबरदस्त सुधार हुआ है। दर्जनों अंतरराष्ट्रीय ब्रांड अब बाजार में मौजूद हैं। बेहतरीन पैक में साफ-सुथरी खजूर और कई ब्रांड ऐसे हैं जो बिना गुठली के शानदार खजूर भी बेच रहे हैं। मुंबई हो या दिल्ली या हैदराबाद, सभी जगह दौलतमंद मुसलमानों के घरों में जैतून के फल ने भी इफ्तारी में अपनी जगह बना ली है। जैतून को लेकर मुसलमानों में श्रद्धा भाव भी है क्योंकि इसे अरब और तुर्की में खूब खाया जाता है।

पटना में अभी भी परंपरा को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है। यहाँ का सब्जी बाग हो या फिर आलमगंज या पटना सिटी। सभी जगह आधुनिक तौर तरीके अपनाए तो जरूर गए हैं लेकिन गरम पकौड़ी और उबले चने फ्राय कर इफ्तारी का रिवाज खत्म नहीं हुआ है। लेकिन ईद में रमजान की खुमारी शायद उतर चुकी होती है। यही वजह है कि सिवइयों के साथ उड़द की दाल के दही बड़े के अलावा अब दर्जनों व्यंजन मिल जाते हैं। मौसमी फल के साथ ही ड्रायफ्रूट भी। बिरयानी और कोरमा तो हर घर की जरूरत है ही। ईद अब सिर्फ सिवइयों का त्योहार नहीं रहा। हालाँकि सिंवईं के बिना ईद का तसव्वुर करना मुश्किल है।

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