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मोहन भागवत : प्रोफाइल

सरसंघचालक मोहनराव मधुकर राव भागवत

हमें फॉलो करें मोहन भागवत : प्रोफाइल
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मोहनराव मधुकर राव भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक (सर्वोच्च प्रमुख) हैं। उन्हें मार्च 2009 में के.एस. सुदर्शन का उत्तराधिकारी चुना गया था। वे लम्बे समय से संघ से जुड़े कार्यकारी रहे हैं और संगठन में काम करते हुए सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं।

मोहनराव भागवत का जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से कस्बे चंद्रपुर में हुआ था। वे संघ कार्यकर्ताओं के परिवार से आते हैं। उनके पिता मधुकर राव भागवत चंद्रपुर क्षेत्र के कार्यवाह (सचिव) पद पर थे और उन्होंने गुजरात में प्रांत प्रचारक के तौर पर काम किया था। मधुकर राव भागवत ने ही भाजपा के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी को संघ में दीक्षित कराया था। मोहनराव अपने पिता के सबसे बड़े बेटे हैं। उनके तीन भाई और एक बहिन है।

उन्होंने चंद्रपुर के लोकमान्य तिलक विद्यालय से स्कूली शिक्षा प्राप्त की और बाद में स्थानीय जनता कॉलेज से बी.एस-सी. की पहली वर्ष की परीक्षा पास की। बाद में, उन्होंने अकोला के पंजाबराव कृषि विद्यापीठ से वे‍टरिनरी साइंसेज ऐंड एनीमल हस्जबेंडरी में स्नातक परीक्षा पास की।

आगे की एम.एस-सी. को बीच में ही छोड़ते हुए वे 1975 के वर्षांत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्ण कालिक प्रचारक बन गए। उस समय देश में आपात काल लगा हुआ था जिसे तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने लगाया था।

आपात काल के दौरान भूमिगत कार्य करने के बाद भागवत 1977 में अकोला (महाराष्ट्र) में प्रचारक बन गए और बाद में उन्हें नागपुर और विदर्भ क्षेत्रों का प्रचारक बनाया गया। वर्ष 1991 में सारे देश में संघ कार्यकर्ताओं के शारीरिक प्रशिक्षण के लिए अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख बने और वे इस पद पर 1999 तक रहे। इसी वर्ष उन्हें सारे देश में पूर्णकालिक काम करने वाले संघ कार्यकर्ताओं का प्रभारी, ‍अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख, बना दिया गया।

वर्ष 2000 में जब राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) और एच.वी. शेषाद्रि ने क्रमश: संघ प्रमुख-सरसंघचालक और महासचिव (सरकार्यवाह) पद से त्याग पत्र दिए तो के.एस. सुदर्शन को नया संघ प्रमुख और मोहन भागवत को सरकार्यवाह बनाया गया था।

वर्ष 2009 में 21 मार्च को मोहन भागवत को सरसंघचालक का ओहदा दिया गया। संघ का प्रमुख बनने वाले वे युवा नेताओं में से एक हैं। उन्हें संघ का स्पष्ट भाषी, विनम्र और व्यवहारिक प्रमुख माना जाता है जोकि संघ को राजनीति से दूर रखने की एक स्पष्ट दूरदृष्टि रखते हैं।

भागवत को औरतों से घृणा करने वाला नेता भी माना जाता है और वे पश्चिमी देशों के घोर विरोधी हैं। हाल ही में एक भाषण में उन्होंने कहा था कि 'महिलाओं से घरों का काम करने की अपेक्षा की जाती है' और उनका कहना था कि 'बलात्कार की घटनाएं इंडिया (पश्चिमपरस्त भारत) में होती हैं भारत (ग्रामीण और भारत के अबतक नैतिक रूप से श्रेष्ठ हिस्सों) में नहीं।'

उनके इस बयान का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है हालांकि उनके बयान की काफी आलोचना की गई। उन्होंने छुआछूत का विरोध किया लेकिन एक अवसर पर यह भी कहा कि भारतीय संविधान का आधार मनुस्मृति को बनाया जाए।

हिंदू समाज में अस्पृश्यता के सवाल पर उनका कहना था कि छुआछूत का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उनका कहना था कि हिंदू समाज विविधता में एकता के आधार पर आधा‍रित है और इसे अपने ही लोगों के खिलाफ भेदभाव जैसी कमजोरी को मिटाना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि हिंदू समुदाय के लोगों को समाज में प्रचलित भेदभाव वाली मानसिकता को दूर करना चाहिए और प्रत्येक हिंदू के घर से ऐसी शुरुआत की जानी चाहिए।

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