मुथूवेल करुणानिधि राजनीतिज्ञ हैं जोकि पांच विभिन्न अवसरों पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे द्रविड़ मुनेत्र कझगम (डीएमके) के अध्यक्ष हैं जोकि राज्य की द्रविड़वादी पार्टी है। पार्टी के संस्थापक सी.एन. अन्नादुराई की मौत के बाद वे पार्टी प्रमुख बने। साठ वर्ष से अधिक के राजनीतिक जीवन में करुणानिधि ने कभी भी हार का मुंह नहीं देखा।
वर्ष 2004 में लोकसभा चुनावों के दौरान करुणानिधि ने तमिलनाडु और पुडुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए का नेतृत्व किया था और दोनों राज्यों की सभी 40 लोकसभा की सीटें जीतनें में कामयाब रहे थे। अगले चुनावों में उन्होंने 2009 में डीएमके के सांसदों की संख्या को 16 से 19 किया था और यूपीए को तमिलनाडु और पुडुचेरी में 28 सीटें जितवाई थीं। करुणानिधि तमिल सिनेमा के नाटककार, पटकथा लेखक हैं। अपने समर्थकों के बीच उन्हें कलईनार 'कलाकार' कहा जाता है।
मुथूवेल करुणानिधि का जन्म 3 जून, 1924 को तिरुवारूर के तिरुकुवावलाई में दक्षिणामूर्ति के नाम से हुआ था। वे मुथूवेल और अंजुगम के बेटे हैं। वे ईसाई वेलार समुदाय से हैं और उनके पूर्वज तिरुवारूर के निवासी थे। करुणानिधि का कहना है कि वे प्रतिदिन योगाभ्यास करते हैं और इससे उन्हें उर्जा और सफलता मिलती है। उनका तीन वार विवाह हुआ है। उनकी तीन पत्नियों में पद्मावती का निधन हो चुका है जबकि दयालु अम्माल और रजतिअम्माल जीवित हैं।
उनके चार बेटे और दो बेटियां हैं। बेटों के नाम एम.के. मुथू, एम.के. अलागिरी, एम.के. स्टालिन और एम.के. तमिलरासू हैं। उनकी बेटियों के नाम सेल्वी और कनिमोझी हैं। कनिमोझी राज्यसभा सदस्य हैं।
एम.के. मुथू उनके सबसे बड़े बेटे हैं जोकि पद्मावती से पैदा हुए थे जिनका जल्दी निधन हो गया। अजागिरी, स्टालिन, सेल्वी और तमिलरासू दयालुअम्माल से पैदा हुए। उनकी तीसरी पत्नी रजतीअम्माल से एकमात्र बेटी कनिमोझी हैं। करुणानिधि अपना मकान दान कर चुके हैं और उनकी मौत के बाद इसे गरीबों के लिए एक अस्पताल में बदल दिया जाएगा।
करुणानिधि ने अपना करियर तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के तौर पर शुरू किया था, लेकिन बाद में अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और भाषण कला के जरिए वे एक लोकप्रिय राजनीतिज्ञ बन गए। उन्होंने तमिल सिनेमा को शिवाजी गणेशन और एस.एस. राजेन्द्रन जैसे कलाकार दिए। उनके लेखन में द्रविड़ आंदोलन की विचारधारा का पुट रहता था इस कारण से उनके विचारों का विरोध भी हुआ। परम्परावादी हिंदुओं ने उनकी फिल्मों का विरोध किया।
फिल्मों में लिखने के अलावा करुणानिधि ने तमिल साहित्य में भी अपना योगदान दिया। उन्होंने कविताएं, पत्र, पटकथाएं, उपन्यास, स्टेज नाटक, संवाद और गीत आदि लिखे। उन्होंने तमिल भाषा और कला को भी अपना योगदान दिया। गद्य और पद्य में लिखी उनकी किताबों की संख्या एक सौ से अधिक है।
मात्र चौदह वर्ष की आयु में करुणानिधि ने राजनीति में प्रवेश किया था और हिंदी विरोधी आंदोलनों में भाग लिया था। उन्होंने द्रविड़ राजनीति का एक छात्र संगठन भी बनाया। अपने सहयोगियों के लिए उन्होंने मुरासोली नाम के एक समाचार पत्र का प्रकाशन किया जोकि अभी भी चल रहा है।
वर्ष 1957 में करुणानिधि पहली बार तमिलनाडु विधानसभा के विधायक बने थे और बाद में 1967 में वे सत्ता में आए और उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया था। 1969 में अन्नादुराई के निधन के बाद वे राज्य के मुख्यमंत्री बने। अपने लम्बे करियर के दौरान उन्होंने पार्टी और सरकार में लम्बा समय बिताया है।
पांच बार मुख्यमंत्री और 12 बार विधान सभा के सदस्य रहने के साथ-साथ वे राज्य में अब समाप्त हो चुकी विधान परिषद के भी सदस्य रहे हैं। अपने कार्यकाल में करुणानिधि ने पुलों और सड़कों के निर्माण कार्य में गहरी दिलचस्पी दिखाई और बहुत से लोकप्रिय कार्यक्रम भी शुरू किए हैं। एक सफल राजनेता, मुख्यमंत्री, फिल्मों के लेखक, साहित्यकार के साथ ही करुणानिधि एक पत्रकार, प्रकाशक और कार्टूनिस्ट भी रहे हैं।
तीसरे विश्व तमिल सम्मेलन, पेरिस में उन्होंने उद्घाटक दिन एक विशेष भाषण दिया था। बाद में छठवीं विश्व तमिल कॉन्फ्रेंस, कुआलालम्पुर में भी उन्होंने उद्घाटक भाषण दिया था। वर्ष 2010 में हुई विश्व क्लासिकल तमिल कॉन्फ्रेंस का अधिकृत थीम सांग उन्होंने लिखा था जिसकी धुन ए.आर. रहमान ने बनाई थी।
उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। दो बार मानद डॉक्टरेट की उपाधि दिए जाने के अलावा उन्हें बहुत सारे सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। - वेबदुनिया.कॉम