प्रश्न : दद्दू, कल एक प्रश्न के जवाब में आपने एक कांग्रेसी नेता के पांच रुपए प्रति समय भोजन मिलने के बयान को सही ठहराते हुए कहा कि ऐसे असली गरीब को पांच रुपए में भोजन मिल सकता है जिसका पेट अंतड़ियों से जाकर चिपका हो, हाथ पैर दुबले-पतले और शरीर कृषकाय व बेजान हों क्योंकि वह पांच रुपए की कीमत से अधिक का भोजन न तो खा सकता है और न ही पचा सकता है। अब फारूख अब्दुल्लाजी का बयान है कि खाना तो बस एक रुपए में भी खाया जा सकता है बस इच्छा होनी चाहिए। यदि आप इस बयान को सही साबित कर दें तो हम आपको मान जाएं।
उत्तर : तकनीकि रूप से उन्होंने कोई गलत बात नहीं की है। भोजन की कीमत आप क्या खाना चाहते हैं इस बात पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए यदि नेताओं के उलूल-जलूल बयानों से व्यथित होकर आपकी इच्छा जहर खाने की हो जाए तो वह एक रुपए में भी आ जाएगा और जिन्दगी भर की भूख भी मिटा देगा।