भाजपा अध्यक्ष राजनाथसिंह चूंकि इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, कांग्रेस के अवसरवादी धड़ाधड़ भाजपा में जा रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस चुनाव में यदि हमने राजनाथसिंह का साथ दिया, तो भाजपा में हमारे लिए बड़ी संभावनाए हैं। एक कांग्रेस का पार्षद भाजपा में जा चुका है। अब शहर कांग्रेस अध्यक्ष नीरज बोरा ने भी कांग्रेस छोड़ दी है। वे भाजपा में शामिल तो अभी नहीं हुए हैं, पर उन्होंने राजनाथ को जिताने की अपील की है।
रीता बहुगुणा जोशी के कांग्रेस उम्मीदवार घोषित होने के बाद से कई लोग कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं। राजनाथसिंह इसी पद्धति से चुनाव लड़ने के लिए जाने जाते हैं। वे विरोधियों को खरीद लेते है। रीता बहुगुणा जोशी इस तरह के झटके बर्दाश्त नहीं कर पा रहीं। रविवार को उनकी कई जनसभाएं थीं, जो उन्होंने टाल दीं। कई जगह उनकी बजाय उनके बेटे मयंक ने जाकर जिम्मेदारी पूरी की। इसके बरखिलाफ राजनाथसिंह ने रविवार को 16 कार्यक्रमों में शिरकत की।
उधर लखनऊ का आम आदमी पहले ही मोदी लहर में है। जिससे बात कीजिए यही कहता है कि इस बार तो मोदी पीएम बन रहे हैं, भाजपा को वोट देना ही बेहतर है। हालांकि लोग आसानी से जुबान नहीं खोलते। पहले टालते हैं और फिर गोल-मोल ढंग से बताते हैं कि वे इस बार भी भाजपा को वोट देने जा रहे हैं। यहां से तीसरे उम्मीदवार हैं आम आदमी पार्टी के जावेद जाफरी। शहर के कुछ उत्साही युवा उनके साथ जरूर हैं, मगर पार्टी का कोई ऐसा संगठन नहीं है, जो घर-घर औऱ गली-गली उनका नाम पहुंचा दे। सो वे बस न्यूज़ चैनलों और अखबारों के भरोसे हैं मगर अखबार वाले भी उनको कोई बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे।
जावेद जाफरी के साथ मुस्लिम युवा ज्यादा हैं। इससे रीता बहुगुणा जोशी की चिंता और बढ़ गई है क्योंकि अगर मुस्लिम वोट भी कट गए तो हालत और खराब हो सकती है। समाजवादी पार्टी के अभिषेक मिश्रा यहां से चौथे प्रत्याशी हैं, उनके साथ सत्ता का बल है। मगर उसके सिवा और कुछ भी नहीं है। सपा को यहां भी गुंडागर्दी का पर्याय माना जाता है।
लखनऊ में साढ़े दस लाख वोटर हैं, जिनमें मुस्लिमों की संख्या काफी है। मगर मुस्लिम वोट बंटा हुआ है। सपा, बसपा, आप, कांग्रेस...। बसपा के नकुल दुबे हैं जिनका प्रचार जोरों से चल रहा है। मुमकिन है बसपा इस बार सीटों के मामले में नंबर दो रहे और कई सीटों पर चौंकाने वाले परिणाम दे, मगर इस सीट पर नहीं...।