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गुड़ी पड़वा से हिन्दू नववर्ष का शुभारंभ

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यूं तो पौराणिक रूप से इसका अलग महत्व है लेकिन प्राकृतिक रूप से इसे समझा जाए तो सूर्य ही सृष्टि के पालनहार हैं। अतः उनके प्रचंड तेज को सहने की क्षमता हम पृथ्वीवासियों में उत्पन्न हो ऐसी कामना के साथ सूर्य की अर्चना की जाती है।
 

 
महाराष्ट्रीयन परिवारों में चैत्र माह की प्रतिपदा को ही नववर्ष की शुरुआत होना माना जाता है। इस दिन बांस में नई साड़ी पहना कर उस पर तांबे या पीतल के लोटे को रखकर गुड़ी बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है।
 
गुड़ी को घरों के बाहर लगाया जाता है और सुख संपन्नता की कामना की जाती है। 

गुड़ी पड़वा, हिन्दू नववर्ष के रूप में भारत भर में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य, नीम की पत्तियां, अर्घ्य, पूरनपोली, श्रीखंड और ध्वजा पूजन का विशेष महत्व होता है।
 
चैत्र माह से हिन्दुओं का नववर्ष आरंभ होता है। सूर्योपासना के साथ आरोग्य, समृद्धि और पवित्र आचरण की कामना की जाती है।

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इस दिन घर-घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी सजाई जाती है।
 
उसे नवीन वस्त्राभूषण पहनाकर शक्कर से बनी आकृतियों की माला पहनाई जाती है।
 
पूरनपोली और श्रीखंड का नैवेद्य चढ़ा कर नवदुर्गा, श्रीरामचन्द्र जी एवं राम भक्त हनुमान की विशेष आराधना की जाती है।
 
इस दिन सुंदरकांड, रामरक्षास्तोत्र और देवी भगवती के मंत्र जाप का खास महत्व है। 

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