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क्या बदलता मौसम आपको भी परेशान करता है, इसे अवश्य पढ़ें

हमें फॉलो करें क्या बदलता मौसम आपको भी परेशान करता है, इसे अवश्य पढ़ें
विजय कुमार सिंघल 'अंजान'  
 
आजकल लोगों में जीवनी शक्ति का बहुत अभाव पाया जाता है। जरा सा मौसम बदलने पर भी वे बीमार पड़ जाते हैं और इसे स्वाभाविक बात मानकर मौसम को ही अपनी बीमारी का कारण बताकर दोष देते हैं। परन्तु मौसम तो सभी के लिए बदलता है। यदि यही बीमारियों का कारण होता, तो सभी लोग बीमार पड़ जाते। कई लोग पहले से ही डरे रहते हैं कि अब मौसम बदलने वाला है, तो बीमार पड़ना ही है। वास्तव में मौसम का बदलना नहीं, बल्कि जीवनी शक्ति की कमजोरी ही उनके बीमार पड़ने का प्रमुख कारण होती है।
 

 
जीवनी शक्ति कमजोर होने के कई कारण होते हैं। उनमें सबसे पहला है- अनुचित खान-पान और दूसरा है- मौसम के विपरीत चलना। हम स्वाद या चलन के वशीभूत होकर मनमानी चीजें खाते-पीते रहते हैं, जिनको हमारा शरीर स्वीकार नहीं कर पाता। उनको पचाने और उनका अधिकांश अनावश्यक भाग शरीर से बाहर निकालने में हमारी बहुत सी जीवनी शक्ति खर्च हो जाती है। इसी प्रकार हम जाड़ों में हीटर के सामने बैठे रहते हैं या गर्म कपड़ों से लदे रहते हैं, गर्मियों में कूलर और एयरकंडीशनर वाले कमरों में बैठे रहते हैं तथा बरसात में घर में घुसे रहते हैं।

इससे हमारा शरीर मौसम के थोड़े से परिवर्तन को भी झेलने में असमर्थ हो जाता है। स्वस्थ रहने और अपनी जीवनी शक्ति बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम मौसम के साथ-साथ चलें अर्थात्‌ जहां तक हो सके जाड़ों में जाड़ा सहन करें, गर्मियों में गर्मी सहन करें और बरसात में भीगें। मौसम सहन-शक्ति से बाहर होने पर ही हमें कृत्रिम उपायों का सहारा लेना चाहिए।

दवाओं पर निर्भरता  
बचपन से ही लोगों के मन में यह बात बैठ जाती है कि यदि कोई व्यक्ति बीमार है या उसे स्वास्थ्य सम्बंधी मामूली सी भी शिकायत है, तो वह दवा के बिना ठीक ही नहीं होगा। इसलिए अस्वस्थ होते ही वे किसी न किसी दवा की तलाश करते हैं या डाक्टरों-वैद्यों के पास भागते हैं। वे यह जानने की कोशिश नहीं करते कि वह बीमारी या शिकायत क्यों पैदा हुई अर्थात्‌ उसका कारण क्या है।

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यदि वे इसका पता लगा लें, तो वह कारण दूर कर देने पर अस्वस्थता भी दूर हो सकती है। परन्तु लोग इतना सोचने का कष्ट नहीं करते और प्रायः मौसम या किसी अज्ञात वस्तु को अपनी बीमारी का कारण मान लेते हैं और विश्वास करते हैं कि शीघ्र ही कोई दवा खा लेने पर वे स्वस्थ हो जाएंगे। वे बीमार पड़ने और उसके लिए दवा खाने को इतनी स्वाभाविक बात समझते हैं कि दवा के बिना स्वस्थ होने की बात उन्हें बिल्कुल अस्वाभाविक और अविश्वसनीय लगती है।

घरेलू नुस्खे भी बेअसर 
 
यदि घर में कोई बड़ा-बूढ़ा होता है, तो वह घरेलू चीजों से बने नुस्खे से उनकी बीमारी दूर करने की कोशिश करता है और आश्चर्य नहीं कि कई बार ये नुस्खे सफल भी हो जाते हैं। इसका कारण यह हो सकता है कि ये नुस्खे मूलतः आयुर्वेद की बुनियाद पर बने होते हैं। लेकिन अधिकतर ये भी असफल हो जाते हैं, क्योंकि ये बीमारी के मूल कारण को ध्यान में रखे बिना आजमाये जाते हैं। आयुर्वेद का प्रसार कम हो जाने के कारण उसका ज्ञान भी सीमित हो गया है और अधिकांश लोग केवल सुने-सुनाए नुस्खों को ही आजमाते हैं।

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एक दवा असफल हो जाने पर लोग उससे बेहतर दवा की तलाश करते हैं। यह तलाश प्रायः अंग्रेजी दवाओं पर जाकर समाप्त होती है। कई बार वे स्वयं उन्हें खरीद लाते हैं और कभी-कभी डाक्टरों के पास जाकर लिखवा लाते हैं। वे सोचते हैं कि ये दवाएं बहुत पढ़े-लिखे डाक्टर ने लिखी हैं, योग्य लोगों द्वारा बड़े-बड़े कारखानों में बनाई गई हैं, नाम भी अंग्रेजी में हैं और महंगी भी हैं, इसलिए अवश्य ही इनमें कुछ गुण होगा। इसलिए वे पूरी निष्ठा और विश्वास से उनका सेवन करते हैं। अधिकांश में उन्हें प्रारम्भिक लाभ भी हो जाता है, जिससे वे डाक्टरों और उनकी दवाओं के प्रशंसक बन जाते हैं। 

 
परन्तु कुछ दिन रोग दबे रहने पर वह फिर से उभरता है, क्योंकि ये दवाएं किसी रोग के कारण को दूर नहीं करतीं, बल्कि केवल उसके लक्षणों को कम कर देती हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को सिरदर्द है। आयुर्वेद की दृष्टि से इसके 175 कारण हो सकते हैं। लेकिन रोगी दर्द के कारण की चिन्ता किए बिना केवल उससे तत्काल मुक्ति पाने से लिए दर्दनाशक दवा की शरण में चला जाता है और कुछ समय के लिए उससे मुक्त भी हो जाता है। दर्दनाशक दवाएं दर्द के कारण को दूर करने की दृष्टि से नहीं बल्कि दर्द का अनुभव न हो इस दृष्टि से बनाई गई होती हैं। दूसरे शब्दों में, वे हमारे नाड़ी तंत्र के उन तंतुओं को निष्क्रिय कर देती हैं, जो दर्द की सूचना हमारे मस्तिष्क को देते हैं। इससे हमें दर्द का पता ही नहीं चलता और हम समझते हैं कि दर्द चला गया। परन्तु वास्तव में दर्द जाता ही नहीं, क्योंकि उसका जो मूल कारण है वह दूर नहीं होता। आवश्यक है कि मौसम के अनुकूल अपने आपको बनाया जाए ना कि मौसम के बहाने से खुद को बीमार किया जाए। 

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