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बुढ़ापा जल्दी आता है इन 10 कारणों से...

हमें फॉलो करें बुढ़ापा जल्दी आता है इन 10 कारणों से...

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

आज ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जो स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाते हैं और समय से पहले ही बुढ़ापे का शिकार हो जाते हैं। बुढ़ापा अर्थात जल्दी बाल सफेद होना, शरीर कमजोर हो जाना, दांत कमजोर होना, गाल अंदर बैठना, जल्दी थक जाना, चेहरा निस्तेज हो जाना, पाचन-तंत्र बिगड़ जाना, आंखें कमजोर होना आदि।

सामान्यत: ये सभी लक्षण बुढ़ापे की अवस्था में होते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जवानी के दिनों में ही काफी युवा इन बुढ़ापे का शिकार हो जाते हैं। आओ हम जानते हैं कि ऐसे कौन से 10 कारण हैं जिनसे बुढ़ापा जल्दी आ जाता है।
 
अत्यम्बुपानं कठिनाशनं च धातुक्षयो वेगविधारणं च।
दिवाशयो जागरणं च रात्रौ षड्भिर्नराणां निवसन्ति रोगा:।।
 
इन 10 में से 6 ऐसे प्रमुख कारण ऐसे हैं, जो दिनचर्या में लापरवाही से होते हैं और इसके चलते व्यक्ति गंभीर रोगों का शिकार बनकर जल्द ही वृद्धावस्था को प्राप्त कर लेता है।
 
अगले पन्ने पर पहला कारण...
 

बहुत ज्यादा मात्रा में पानी पीना : कई लोग यह मानते हैं कि अधिक मात्रा में पानी पीने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है, लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि किडनी को उतना ही अधिक कार्य भी करना होगा। 'अति सर्वत्र वर्जयेत' (अधिकता सभी जगह बुरी होती है)। आयुर्वेद के अनुसार बहुत अधिक मात्रा में पानी पीने से व्यक्ति में जल्दी बुढ़ापा आता है।
 
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आयुर्वेदानुसार अधिक पानी पीने से आपके वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाता है। भोजन करते समय और भोजन के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए। हमेशा बैठकर ही पानी पीना चाहिए, खड़े होकर नहीं। पानी स्वच्छ हो, इस बात का ध्यान रखना जरूरी है। हर कहीं का पानी पीने से परहेज करें।
 
अगले पन्ने पर दूसरा कारण...
 

दिन में सोना और रात में जागना : प्रकृति ने हमारे शरीर में एक घड़ी फिट कर दी है। प्राचीनकाल में मनुष्‍य उस घड़ी के अनुसार ही सो जाता और प्रात: काल जल्दी उठ जाता था। कहते हैं कि 'जो रात को जल्दी सोए और सुबह को जल्दी जागे, उस बच्चे का दूर-दूर तक दुनिया का दुख भागे।'
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लेकिन आज के मानव की दिन और रातचर्या बदल गई है। देर तक टीवी देखना या ऑफिस में काम करना और उसके बाद दिनभर या सुबह देर तक सोना जारी है। शास्त्रों के अनुसार यह आदत बुढ़ापे को जल्दी आमंत्रित करती है। कई लोग ऐसे हैं, जो दिन में भी सोते हैं और रात में भी और यह उनकी आदत बन जाती है।
 
नींद का टाइमिंग बिगड़ने से नींद की कमी हो जाती है। नींद कई रोगों को स्वत: ही ठीक करने में सक्षम है। नींद की कमी से न केवल आंखों के इर्द-गिर्द कालापन आता है, बल्कि कम सोने से दिमाग थका हुआ महसूस करता है और वजन भी बढ़ता है।
 
अगले पन्ने पर तीसरा कारण...
 

भारी यानी गरिष्ठ भोजन करना : गरिष्ठ भोजन को पचाने के लिए आंतों को अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है। जो काम दांत नहीं करते, उस काम को भी आंतों को करना पड़ता है। यदि आप गरिष्ठ भोजन कर रहे हैं, तो दांतों का थोड़ी ज्यादा तकलीफ दे दें। 
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गरिष्ठ भोजन करने के बाद पेट फूल जाता है। गरिष्ठ भोजन जो शायद स्वाद में अच्छा लग सकता है, लेकिन शरीर को उसे पचाने में ज्यादा ऊर्जा खर्च करनी पड़े तो तन तो स्फूर्तिदायक रह नहीं पाता, मन भी कष्ट पाता है।
 
मांस और मछली के अलावा आलू, अरबी, जमींकंद सभी गरिष्ठ हैं। चावल बिना मांड निकाले खाना गरिष्ठ ही होता है। ज्यादा तली हुई और मसालेदार चीजें गरिष्ठ ही होती हैं। जंक और फास्ट फूड भी गरिष्ठ ही होते हैं। कई तरह के गरिष्ठ नाश्ते भी होते हैं, जो आपकी आंतों को दिन-प्रतिदिन कमजोर करके पाचन क्रिया को समाप्त कर देते हैं। इससे कब्ज, अजीर्ण, एसिडिटी और उदर संबंधी अन्य रोग होने लगते हैं, जो बुढ़ापे को जल्द आमंत्रित कर लेते हैं।
 
भूख लगने पर ही भोजन करें। जितनी भूख हो, उससे थोड़ा कम खाएं। अच्छी तरह चबाकर खाएं। दिनभर कुछ न कुछ खाते रहने का स्वभाव छोड़ दें। दूध, छाछ, सूप, ज्यूस, पानी आदि तरल पदार्थों का अधिकाधिक सेवन करें।
 
अगले पन्ने पर चौथा कारण...
 

धातुक्षीणता या वीर्य स्खलन : धातुक्षीणता आज के अधिकांश युवकों की ज्वलंत समस्या है। कामुक विचार, कामुक चिंतन, कामुक हाव-भाव और कामुक क्रीड़ा करने के अलावा खट्टे, चटपटे, तेज मिर्च-मसाले वाले पदार्थों का अति सेवन करने से शरीर में कामाग्नि बनी रहती है जिससे शुक्र धातु पतली होकर क्षीण होने लगती है।

इसके और भी कई कारण हैं। वीर्य बल का प्रतीक है। यह जितनी ज्यादा मात्रा में संचित होता रहता है, व्यक्ति उतना स्वस्थ और जवान बना रह सकता है।
 
अगले पन्ने पर पांचवां कारण...
 

मल-मूत्र का वेग रोकना : कभी भी पेशाब या मल आए तो उसे रोकना नहीं चाहिए। इसे रोके रखने से किडनी और आंतों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। यह आदत कई तरह के गंभीर रोगों को जन्म देने में सक्षम है।
 
अगले पन्ने पर छठा कारण...
 

अवसाद : अक्सर माना जाता है कि अवसाद या डिप्रेशन इंसान को मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर बना देता है। मगर अब वैज्ञानिकों का कहना है कि इन समस्याओं के साथ ही अवसाद बुढ़ापा भी जल्दी लाता है।
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नीदरलैंड्स के वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि डिप्रेशन के कारण शारीरिक क्षमताओं पर भी बुरा असर पड़ता है और यह सेल्स में एजिंग की प्रक्रिया को तेज कर देता है। जो लोग गंभीर किस्म के अवसाद का शिकार होते हैं, वे बाकी लोगों के मुकाबले जल्दी बूढ़े हो जाते हैं। यह नतीजा 2,407 लोगों पर किए गए एक शोध में निकाला गया
 
क्रोध, चिंता, तनाव, भय, घबराहट, चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या आदि भाव बुढ़ापे को न्योता देने वाले कारक हैं। हमेशा प्रसन्नचित्त रहने का प्रयास करें। उत्साह, संयम, संतुलन, समता, संतुष्टि व प्रेम का मानसिक भाव हर पल बना रहे।
 
अगले पन्ने पर सातवां कारण...
 

अधिक नमक खाना : अधिक नमक खाने से बुढ़ापा जल्दी आता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सोडियम की बहुत अधिक मात्रा लेने से कोशिकाओं का क्षय होता है। इसका प्रभाव अधिक वजन वाले लोगों में सबसे ज्यादा देखा जाता है। जो किशोर मोटे होते हैं और चिप्स आदि के जरिए बहुत अधिक नमक खाते हैं, उनके शरीर में कोशिकाओं की आयु तेजी से बढ़ने लगती है। इस कारण वे जीवन में बाद के वर्षों में हृदय रोग के शिकार हो सकते हैं।
 
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भोजन में नमक की कमी करने से कोशिकाओं की आयु बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। आगस्ता स्थित जॉर्जिया रीजेंट्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है जिसमें उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि खाने में नमक की अधिक मात्रा से शरीर की कोशिकाओं का क्षय होता है और ये समय से पहले ही बूढ़ी हो जाती हैं जबकि खाने में नमक की कम मात्रा कोशिकाओं की एजिंग प्रोसेस को धीमी कर देती है। यह तथ्य ऐसे लोगों के मामले में अधिक प्रभावी होता है, जो कि मोटे होते हैं या जिनका वजन ज्यादा होता है।
 
अगले पन्ने पर आठवां कारण...
 

नशा करना : तंबाकू, धूम्रपान या शराब को पहले व्यक्ति पीता है, इसके बाद यह व्यक्ति को पीने लगती है। धूम्रपान से कुछ ही दिनों में त्वचा पर बुरा असर पड़ता है। शराब आपके लिवर, दिल और दिमाग को कमजोर करती जाती है। तंबाकू चबाने की आदत से व्यक्ति के दांत और गाल वक्त के पहले ही खत्म हो जाते हैं।
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जहां तब सवाल स्मोकिंग का है तो इससे त्वचा खुश्क होती है और चेहरे पर झुर्रियां पड़ती हैं। स्मोकिंग से शरीर में विटामिन सी का स्तर भी घटता है, जबकि विटामिन सी का काम त्वचा की नमी बनाए रखना होता है। निकोटिन झुर्रियां पैदा करता है।
 
अगले पन्ने पर नौवां कारण...
 

प्रदूषण : प्रदूषण कई प्रकार का होता है। प्रमुख प्रदूषण हैं- वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण। प्रदूषण से भी व्यक्ति वक्त के पहले बूढ़ा होने लगता है। प्रदूषण से फेफड़ों, आंखों और त्वचा पर असर पड़ता है। आज पूरा भारत वर्ष कचरे का ढेर बना हुआ है। मोदीजी के स्वच्छता अभियान का अभी असर देखने को नहीं मिला।
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प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना प्रदूषण कई प्रकार का होता है। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना शरीर और मस्तिष्क के लिए बहुत ही घातक है।
 
वायु-प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है। 
 
जल-प्रदूषण : कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है। 
 
ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
 
अगले पन्ने पर दसवां कारण...
 

बहुत देर तक बैठना : बहुत देर तक बैठना : ऑफिस में लगभग 8 घंटे बैठे रहना पड़ता है। कई लोगों की दुकाने हैं जहां उनको कम से कम 12 घंटे बैठे रहना पड़ता है। जिन लोगों का काम बैठे रहने का है उन्हें गुर्दे और हृदय के रोग हो सकते हैं। मोटापा तो होता ही हैं यहां तक कि उन्हें कैंसर का भी खतरा बना रहता है। 
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'ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन' के मुताबिक नियमित कसरत से इसे टाला जा सकता है और उम्र बढ़ाई जा सकती है। वे लोग जो हफ्ते में करीब 150 मिनट कसरत करते हैं, वे कसरत न करने वालों से औसतन 10 से 13 साल ज्यादा जीते हैं।
 

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