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क्‍यों होता है बुखार?

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अमेरिकी खोजकर्ताओं ने दिमाग में मौजूद उस छोटे से केंद्र का पता लगाने में कामयाबी हासिल कर ली है, जो चूहों में बुखार पैदा करता है। खोजकर्ताओं ने बताया कि यदि यह पता लगा लिया जाए कि यह किस तरीके से काम करता है तो इससे इंसानों में फीवर और दूसरी बीमारियों को नियंत्रित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कामयाबी मिल सकेगी।

वैज्ञानिकों के मुताबिक लोग जब बीमार प़ड़ते हैं तो श्वेत रक्त कणिकाएँ शरीर की रक्षा के लिए केमिकल सिग्नल भेजना शुरू करती हैं। इन सिग्नलों को साइटोकिन्स कहते हैं। ये संदेश वाहक दिमाग में मौजूद रक्त शिराओं को प्रोस्टाग्लैंडिन ई-2 नामक हार्मोन बनाने को प्रेरित करती हैं । बोस्टन स्थित बेथ इसराइल डेकोनेस मेडिकल सेंटर के डॉ. क्लिफोर्ड सैपर ने बताया कि यह प्रक्रिया दिमाग को संक्रमण या सूजन के दौरान प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य करती है। डॉ. क्लिफोर्ड की स्टडी नूचर न्यूरो साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है।

शोधकार्ताओं ने पाया कि प्रोस्टाग्लैंडिन ई-2 हार्मोन दिमाग में मौजूद हाइपोथैलेमस नामक हिस्से पर अपना प्रभाव डालता है। दरअसल हाइपोथैलेमस ही मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो हमारे शरीर में भूख, प्यास, यौन इच्छा और तापमान जैसी चीजें नियंत्रित करताहै। सैपर और उनके सहयोगी यह पता लगाना चाहते थे कि मस्तिष्क में मौजूद कौन सा नर्व सेल (शिरा कोशिका) बुखार पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। इसके लिए उन्होंने लैब में चूहे पर अपना प्रयोग किया। उन्होंने व्यवस्थित तरीके से ईपी-3 रिसेप्टर के लिए जिम्मेदार जीन को समाप्त कर दिया। ईपी-3 रिसेप्टर ब्रेन का ऐसा हिस्सा है जो प्रोस्टाग्लैंडिन ई-2 हार्मोन ग्रहण करता है। दिमाग की बहुत सी कोशिकाएँ ईपी-3 रिसेप्टर का निर्माण करती हैं।

शोधकर्ताओं का म
सैपर ने कहा कि हमने पाया कि अगर इस ईपी-3 रिसेप्टर को हटा दिया जाए तो दिमाग बुखार के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देना छो़ड़ देगा। हम उम्मीद करते हैं कि ठीक ऐसा ही मानवीय मस्तिष्क के साथ भी है। उन्होंने बताया कि एस्प्रिन जैसे पेनकिलर शरीर में मौजूद सभी तरहके प्रोस्टाग्लैंडिन रिसेप्टर पर काम करते हैं।

लेकिन उनके साइड इफेक्ट्स भी होते हैं। इस बात की जानकारी हासिल होने से फीवर से जु़ड़े रिसेप्टर का पता लगाकर उन्हें कैसे खत्म किया जा सकता है, भविष्य में बुखार को खत्म करने के लिए अति विशेषीकृत दवाएँ बनाई जा सकेंगी।

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