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चार्ली चैपलिन एक अद्वितीय अभिनेता

अभिनय के शिखर तक पहुँचने की गाथा

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रवींद्र व्यास

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मुझे चार्ली चैपलिन की फिल्में उस मजूर की याद दिलाती हैं जो सड़क किनारे गड्ढा खोदते हुए बार-बार अपनी खिसकती धोती को कसने की कोशिश करता है और किसी पेड़ या टापरे के नीचे या गुमटी में काँदे के कुछ टुकड़ों, हरी मिर्च और नमक में सूखी रोटी खाते हुए जीवन के आनंद का स्वाद चखता है।

एक समय था, जब मैं उनकी फिल्मों को देख-देख लोटपोट हो जाया करता था, अब देखता हूँ तो उदासी से भर जाता हूँ। और जब उन पर लिखी गई किताबें पढ़ता हूँ तो यह उदासी और भी गहरी होती जाती है। कई बार मुझे लगता है कि चार्ली चैपलिन अपनी किसी तितली की तरह थोड़ी-थोड़ी देर में उड़ती हँसी के जरिए मनोरंजन नहीं करते बल्कि समय की परतों में दबी रह गई हमारी रुलाई को फूटने के लिए जगह देते हैं, रास्ता बनाते हैं।

  चार्ली ने बड़े ही भोले अंदाज में जवाब दिया कि वह दूसरा गाना जरूर सुनाएगा लेकिन मंच पर पड़े सिक्के उठाने के बाद। उसकी यह बात सुनते ही पूरा हाल ठहाकों से गूँज उठा।      
उनकी कोई बेहद कल्पनाशील और किफायती हरकतें अभिनय नहीं, समय से रगड़ खातीं वे इबारतें हैं जिनमें समय की सचाइयाँ फटे जूते से अँगूठे की तरह निकलती दिखाई देती हैं।

पैम ब्राउन की पतली-सी किताब चार्ली चैपलिन को पढ़ना उन स्थितियों-परिस्थितियों से गुजरना है जिनके कारण चार्ली, चार्ली चैपलिन बने। यह किताब चैपलिन की माँ हैनी के नाकामयाब वैवाहिक जीवन, अपने बच्चों के लिए अथाह प्रेम और उनके जीवन की बेहतरी के लिए किए गए अथक संघर्षों को खूबी से रेखांकित करती है और इसी के बीच उस प्यारे बच्चे चार्ली के पहली बार मंच पर आने से लेकर अभिनेता बनने की प्रकिया, फिर फिल्म मेकर बनने की इच्छा और इस इच्छा को पूरा करने के उनके समर्पण, फिर प्रेम, विवाह से लेकर तलाक, फिर विवाह, शोहरत और कामयाबी के सफर को संक्षिप्त में लेकिन अचूक दृष्टि से चित्रित करती है।


छोटे-छोटे उपशीर्षकों के तहत लिखे गए छोटे-छोटे अध्यायों में पैम ब्राउन ने चार्ली के जीवन के तमाम रंगों को, बदरंगों को, उत्साह और उमंग को, अपनी कला के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और अपने समय के बड़े सवालों से जूझने की उनकी कल्पनाशील रचनात्मकता को छोटे-छोटे किस्सों-विवरणों और तथ्यों के जरिए जीवंत करने की कोशिश की है।

उदाहरण के लिए मंच पर चार्ली का पहली बार कला-प्रदर्शन उपशीर्षक के तहत वे लिखती हैं कि हो-हल्ला मचाने वाले श्रोता आनंदित हो उठे और उन्होंने मंच पर सिक्के उछालना शुरू कर दिए। उन्होंने उससे (चार्ली चैपलिन) एक और गीत सुनाने की फरमाइश की।

चार्ली ने बड़े ही भोले अंदाज में जवाब दिया कि वह दूसरा गाना जरूर सुनाएगा लेकिन मंच पर पड़े सिक्के उठाने के बाद। उसकी यह बात सुनते ही पूरा हाल ठहाकों से गूँज उठा।

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तो यहाँ से उस अद्वितीय कलाकार की वह कलाकारी शुरू होती है जिसने अब तक लोगों को कई तरह से हँसाया है। यह किताब अपनी मार्मिकता में यह बताने की कोशिश करती है कि चार्ली के महान अभिनेता और फिल्म मेकर बनने में लंदन की गलियों के शराबघर, शराबियों और उसकी माँ द्वारा आते-जाते लोगों के अभिनय करने के गुण ने कितना बड़ा रोल अदा किया।

चार्ली चैपलिन ने तो एक बार कहा भी था कि ऐसा लगता है कि आज तक मैं जितनी महिलाओं से मिल चुका हूँ उन सब में मेरी माँ अत्यंत अद्भुत थीं...। मैं इस दुनिया में ढेर सारे लोगों से मिल चुका हूँ लेकिन मेरी भेंट ऐसी किसी महिला से नहीं हुई जो मेरी माँ से अधिक परिष्कृत रही हो। अगर मैं कभी कुछ बन गया तो इसका श्रेय मेरी माँ को ही जाएगा।


कहने की जरूरत नहीं कि वे अपनी माँ को कितना चाहते थे और यही कारण है कि जब उन्हें शोहरत और पैसा हासिल हुआ तब उन्होंने अपनी बीमार माँ को लंदन बुलाया। उस माँ के लिए बेहतरीन कपड़ों से भरा ट्रंक दिया जो कभी बचपन में अपने बच्चों को पालने के लिए दिन-रात सिलाई किया करती थी।

  यह किताब उन्हें बेहतर ढंग से जानने-समझने का एक अच्छा मौका देती है। यह उनकी जीवनी पढ़ने का मजा भी देती है और उनके अद्वितीय अभिनेता बनने की कहानी भी सुनाती है।      
इसी तरह के कई और दिल को छू लेने वाले प्रसंग इस किताब में हैं। किताब में लिखी गईं इन पंक्तियों पर गौर करेंगे तो बाआसानी यह समझ आ सकेगा कि वे किस मिट्टी के बने थे और सिनेमा के लिए उनका प्रेम किस स्तर का था। ये पंक्तियाँ कहती हैं- वे विख्यात थे, देखने में अच्छे और अत्यंत धनी थे। वे आसानी से दिल दे बैठते थे।

उनके इसी स्वभाव ने उन्हें फिल्मों में अभिनय करने का अवसर पाने और उनके ऐश्वर्य में साझेदारी करने के लालच में फँसी सुंदरियों का लक्ष्य बना दिया था। परेशानी तो यह थी कि चार्ली चैपलिन के दिलो-दिमाग पर उनका काम पूरी तरह हावी था। यही वजह है कि वे आसानी से और जल्दी ही प्यार के भँवर से निकल आते थे।

चार्ली चैपलिन ने अस्सी से ज्यादा फिल्में बनाईं जिसमें आज भी कई विश्व-सिनेमा की धरोहर और अद्वितीय फिल्में हैंउन्हें कई पुरस्कार मिलेकई उपाधियाँ मिलीं, लेकिन उनके जीवन का दु:खद पहलू यह था कि अमेरिका में उन पर झूठे आरोप लगाए गए कि वे कम्युनिस्ट हैं और वहाँ के तत्कालीन एटार्नी जनरल ने उनके अमेरिका पर फिर से प्रवेश पर रोक लगा दी और उन्हें निर्वासित कर दिया गया।

लेकिन इतिहास में यह भी दर्ज है और यह किताब इसे रेखांकित भी करती है कि अमेरिका को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने उनसे माफी माँगी और उन्हें सम्मानित किया। ब्रिटेन में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई।


88 वर्ष की उम्र में 25 दिसंबर 1977 को उनकी मृत्यु हुई लेकिन वे अपनी मृत्यु को अपनी फिल्मों से पराजित करते हुए हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए और आज भी वे स्क्रीन पर अपनी खास अदा से, अपनी खास वेशभूषा और खास हँसी से हमेशा हँसा रहे हैं।


यह किताब उन्हें बेहतर ढंग से जानने-समझने का एक अच्छा मौका देती है। यह उनकी जीवनी पढ़ने का मजा भी देती हऔर उनके अद्वितीय अभिनेता बनने की कहानी भी सुनाती है। इसका अच्छा और प्रवाहमयी अनुवाद यश सरोज ने किया है।

किताब : चार्ली चैपलि
लेखक : पैम ब्राउन
अनुवाद : यश सरोज
प्रकाशक : ओरियंट लांगमैन लिमिटेड

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