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विक्रम सेठ : दो जीवन की चर्चा

'टू लाइव्स : संस्मरणात्मक पुस्तक

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-क्रांति
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अपने वृहद उपन्यास 'ए सुटेबल बॉय' से प्रसिद्ध हुए लेखक विक्रम सेठ के उपन्यास 'टू लाइव्‌स' ने भी साहित्य- जगत का ध्यान आकर्षित किया था। हालाँकि अँगरेजी में लिखने वाले इस भारतीय उपन्यासकार की 'एन इक्वल म्यूजिक' जैसी कृतियाँ भी आईं परंतु 'टू लाइव्‌स' यानी दो जीवन की चर्चा काफी जोरों पर रही। ।

सेठ और उनके उपन्यास को लेकर मची खास हलचल की वजह यह थी कि यह एक साथ कई दुनियाएँ समेटता है। इसमें हिटलर के समय का जर्मनी, द्वितीय विश्व युद्ध है तो भारत के स्वाधीनता आंदोलन का समय भी, 1970 का ब्रिटेन और फिलिस्तीन, इसराइल भी। मगर यह उपन्यास आत्मकथात्मक है और संस्मरणात्मक भी! यह कैसे संभव है?

यह ऐसे संभव है कि इसके कथानक के रूप में विक्रम सेठ ने अपने नाना के छोटे भाई शांतिबेहारी सेठ और उनकी जर्मन पत्नी हेनी के जीवन की कथा को चुना है। शांति अंकल जो एक भारतीय हैं। जो डेंटिस्ट के रूप में जर्मनी गए। वहाँ हेनी के माता-पिता के घर में किराए से रहे। जब शांति जर्मनी पहुँचे तो जर्मन नहीं जानते थे और उनके आगमन पर हेनी ने कहा था- 'निम डेन श्वारजेन, निश्ट (इस काले आदमी को यहाँ मत रहने दो)।' मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। हिटलर कालीन जर्मनी में हेनी की माँ और बहन लोला यातना शिविरों में मर गईं। हेनी लंदन में थीं सो बच गईं।

इधर शांति सेठ ब्रिटिश आर्मी डेंटल यूनिट में मोर्चे पर गए और वहाँ बम धमाके में अपना एक हाथ खो बैठे। इन दो अकेलों ने बाद में विवाह कर लिया। विक्रम सेठ की कहानी लंदन में अपने ग्रेट अंकल-आंट के साथ बिताई किशोरावस्था से शुरू होती है और द्वितीय विश्वयुद्ध काल में जाती है। अपनी इस कृति में विक्रम सेठ ने जर्मन-यहूदी स्त्री 'हेनी' के व्यक्तित्व और व्यवहार का खाका खींचा है और लकड़ी के हाथ से भी सफल डेंटिस्ट बने रहने वाले अंकल शांति सेठ का भी। यही अर्थ है इनकी कृति 'टू लाइव्‌स' यानी दो जीवन का। यह पुस्तक 512 पेज की है।

पुस्तक- 'टू लाइव्‌स'
लेखक- विक्रम सेठ
प्रकाशक- वाइकिंग
मूल्य- 695 रुपए।

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