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पुस्तक समीक्षा : हिमालय का कब्रिस्तान

हमें फॉलो करें पुस्तक समीक्षा : हिमालय का कब्रिस्तान
केदारनाथ की तबाही, कश्मीर का जलजला और नेपाल के भूकंप पर आधारित 'लक्ष्मी प्रसाद पंत' द्वारा लिखि‍त पुस्तक हिमालय का कब्रिस्तान, हिमालय को धरती  के स्वर्ग की छवि से अलग कर उसकी असल गाथा, दशा और दुर्दशा की एक झलक भी पाठकों तक पहुंचाती है।


हिमालय के साथ दिक्कत यह है, कि हमारे उसे देखने के नजरिये में या तो खूबसूरती है या गहरी देव-तुल्य आस्था। अफसोस यह है, कि सरकारों की मानवीय नीतियां शुरू भी यहीं से होती हैं और खत्म भी यहीं हो जाती हैं। यही नजरिया दुर्भाग्यपूर्ण है। 
 
हिमालय हमें जाने क्यों देवदूत दिखता है! मानो ईश्वर से संवाद का रास्ता यहीं से गुजरकर जाता है। विडंबना देखिए, हम एक ओर हिमालय की जड़ें खोद रहे हैं तो दूसरी ओर जब कोई पत्थर गिरता है, तो उसे हम दैवीय आपदा का नाम दे देते हैं। चाहे वो भूकंप हो या भूस्खलन। ऊपर से यह घोर बाजारवादी मानसिकता, जिसने हिमालय की हर चोटी, हर संपदा पर प्राइस टैग लगा दिया है। हिमालय के पानी तक को हमने बोतलबंद कर दिया है, बस डिब्बाबंद हिमालय आने का इंतजार बाकी है। 
 
गौर से देखें तो रंगीन तस्वीरों, फि‍ल्मी दृश्यों में हिमालय हमेशा मुस्कराता दिखता है। धरती का सबसे सुंदर ठिकाना भी यही लगता है। आप जब भी इन दृश्यों को देखते हैं, तो एक नई अनुभूति भी पाते हैं। लेकिन, जाने क्यों हमारे कल्पना-लोक में हिमालय की निशानदेही फिल्मी दृश्यों की खूबसूरत लोकेशनों से आगे नहीं बढ़ पाती है। एक फिल्म, कुछ तस्वीरें और करियरवादी वाइल्डलाइफ या नेचुरल-फोटोग्राफर जो देखते हैं या हमें दिखाने के लिए अपने कैमरों में दर्ज कर ले जाते हैं, वही हिमालय का सच नहीं है ! न ही हिमालय पोलर बियर के फर से बना कोई टैडी बियर है। 
 
मौजूदा कानूनों, नियमों और नीतियों से टूटता-बिखरता, सड़ता-गलता हिमालय न हमें दिखता है और न ही दिखाया जाता है। संक्षेप में, हिमालय की याद तभी आती है, जब मई-जून की गर्म हवाएं किसी गांव-शहर की सरहद में दाखिल होकर हमें तड़पा देने की हद तक तपा देती हैं। पहाड़ों को लेकर हमारा रुझान बच्चों की छुट्टियों तक सीमित है। आश्चर्य होता है कि हिमालय हमारे लिए इन तात्कालिक जरूरतों से ज्यादा कुछ नहीं है। और मान भी लें कि हिमालय को पहचानने का हमारा हुनर यही है, लेकिन फिर सोचिए वैसा हिमालय आपको कैसा लगेगा जिसमें न बर्फ हो, न बादल हों और न ही हरियाली। केदारनाथ की तबाही, कश्मीर का जलजला और नेपाल का भूकंप यही संकेत दे रहे हैं और हम सब तबाही की एक और नई तारीख का इंतजार कर रहे हैं।
 
पुस्तक : हिमालय का कब्रिस्तान  
लेखक :  लक्ष्मी प्रसाद पंत 
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 
मूल्य - 495/

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