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संग्रहणीय है 'इन दिनों देश-विदेश में'

हमें फॉलो करें संग्रहणीय है 'इन दिनों देश-विदेश में'

वृजेन्द्रसिंह झाला

’इन दिनों देश-विदेश में’ शरद सिंगी के उन लेखों का संकलन है, जो वेबदुनिया समेत विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इससे पहले भी उनके लेखों का एक संकलन प्रकाशित हो चुका है। इस पुस्तक में लेखक ने देश-विदेश की 2013-14 की समसामयिक घटनाओं को बखूबी समेटा है। उन्होंने विषय की पूरी गहराई में जाकर लेख लिखे हैं। उनके आलेखों को पढ़कर लगता है कि उनकी समसामयिक घटनाओं पर पैनी नजर रहती है और उतने ही धारदार तरीके से वे कलम भी चलाते हैं।
 
पुस्तक को छह खंडों में विभाजित किया गया है। प्रथम खंड एशियाई हलचल के नाम से है, जिसमें उन्होंने एशिया जुड़ी घटनाओं का समावेश किया है। ‘परिवर्तन की लहरों से आंदोलित एशिया, प्रजातंत्र और राजतंत्र के बीच झूलता थाईलैंड, एक राष्ट्र है और नहीं भी ताईवान, चुनौतियों से जूझते दो पड़ोसी प्रजातंत्र और स्वागत योग्य है सत्ता परिवर्तन : ईरान’ इस खंड के प्रमुख आलेख हैं। पुस्तक का दूसरा खंड भारत को समर्पित है। हमारी शान है हमारा गणतंत्र में लेखक लिखते हैं- ‘हमारे देश में संविधान सर्वोपरि है न कि कोई व्यक्ति, वंश, समाज या समुदाय।‘ इसके माध्यम से लेखक संविधान की महिमा को दर्शाते हैं तो वहीं ‘विपरीत धाराएं हैं प्रजातंत्र और वंशवाद’ में राजनीति में व्याप्त वंशवाद पर करारी चोट करते हैं। ‘क्यों नाज है हमें भारत के प्रजातंत्र पर’ और ‘विकारों से स्वयं को मुक्त करता प्रजातंत्र’ भारतीय लोकतंत्र के प्रति उम्मीदें बढ़ाते हैं तो ‘अभी भी बहुत दूर है भारत में आदर्श प्रजातंत्र’ में हताशा परिलक्षित होती है। 
 
पुस्तक के तीसरे खंड में लेखक ने मध्य-पूर्व की हिंसा और आतंकवादी घटनाओं पर प्रकाश डाला है। इस खंड में ‘विघटनकारी ज्वाला में जलता इराक, महाशक्तियां असमंसज में, लहूलुहान सीरिया, बिना सरपरस्तों के बढ़ता नहीं आतंकवाद, आतंक के साये में मध्य-पूर्व, आतंकवाद के विरुद्ध कठोर पहल’ लेख हैं। पुस्तक का चौथा खंड है- परिवर्तनों के रुझान यूरोप’। ‘चमत्कार ही है लौह महिला एंजेला मर्केल जर्मनी की, आज खुद टूट रहा है तोड़ने वाला यूके, विश्व राजनीति में दक्षिणपंथी रुझान, विश्व की मंशा के अनुरूप परिणाम : स्कॉटलैंड, केवल भारत में ही नहीं हैं धार्मिक अंधेरे’ लेखों में लेखक ने यूरोप की राजनीति और वहां की घटनाओं पर प्रकाश डाला है। 
 
पुस्तक का पांचवें खंड में दुनिया की महाशक्तियों पर केन्द्रित छह आलेख हैं। इनमें महाशक्ति बन जाना आसान नहीं है : चीन, चीनी ड्रैगन का दंश भोगता मासूम तिब्बत, अंतरराष्ट्रीय मंच पर ओबामा और पुतिन, नवोदित भस्मासुर चीन को घेरने का अमेरिकी प्रयास और महाशक्तियों के अनाचार को भोगते कई राष्ट्र। पुस्तक के छठे खंड में भारत की विदेश नीति से संबंधित आलेख हैं। ‘विनम्रता शक्तिशाली का गहना है, कमजोर की मजबूरी है। जिसके हाथ में भिक्षा का पात्र है, उसे दाता पर गुर्राने का हक नहीं' के माध्यम से लेखक आत्मविश्वास से भरी हुई विदेश नीति की वकालत करते हैं तो ‘मोदी को गढ़नी होगी एक सुदृढ़ विदेश नीति’ में सलाह भी छुपी है। इनके अतिरिक्त इस खंड में पांच और आलेख हैं। इनमें- दूरगामी प्रभाव होंगे ब्रिक्स बैंक की स्थापना के, कई उद्देश्य निहित थे नमो की भूटान यात्रा में, मोदीजी की सफल जापान यात्रा के मायने, जिनपिंग का प्रभावहीन दौरा और विश्व मंच की कहानी, उसी की जुबानी। 
 
पुस्तक का सातवां और अंतिम खंड विज्ञान पर केन्द्रित है। इसमें चार लेख हैं। इनमें- सूर्य की ध्रुवीय गुलाट, आधुनिक विज्ञान की चरम रचना रोबोट, एलियंस से कम होते फासले और रसायनशास्त्र में युगांतरकारी अनुसंधान। कुल मिलाकर यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए काफी उपयोगी है, जो समसामयिक घटनाओं में रुचि रखते हैं। पुस्तक का मुद्रण और आवरण पृष्ठ काफी आकर्षक बन पड़ा है। पुस्तक संग्रह के योग्य है। 
 
पुस्तक : इन दिनों देश/विदेश में 2013-14
लेखक : शरद सिंगी
प्रकाशक : इंद्रा पब्लिसिंग हाउस, भोपाल
मूल्य : 225 रुपए


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