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कालिदास समारोह : चमक क्यों खोता गया

संस्थापक विद्वानों के नाम मिटाए जा रहे हैं

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डॉ. शिव शर्म
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प्राचीन उज्जैन के छोटे से कार्तिक चौक में चौपाल-थियेटर की तरह बनाए गए मंच से प्रारंभ हुआ कालिदास समारोह आज रूस, चीन एवं अन्य देशों तक व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। लगभग भुला दिए गए विश्व कवि कालिदास के स्मरण के इस उत्सव का सूत्रपात प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित सूर्यनारायण व्यास ने तीस के दशक में किया था। कभी इस समारोह में रूस के संस्कृत विद्वान वाव्यान्निकोव और महान कलाकार स्व. पृथ्वीराज कपूर आया करते थे।

साठ के दशक में इसकी कीर्ति बढ़ती देख प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद एवं प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित करने का जिम्मा मध्यप्रदेश शासन को सौंप दिया। प्रारंभ में वे स्वयं इनमें शिरकत करने आए। पं. ओंकारनाथ ठाकुर और बिस्मिल्लाह खाँ जैसे महान कलाकारों को सुनने के लिए माधव कॉलेज के मैदान में लाखों लोग जुटने लगे।

आज इस समारोह की यह दुर्दशा है कि मंच पर अतिथि अधिक बैठे मिलते हैं और दर्शकों में खाली-खाली तंबू और खाली-खाली डेरे। गत वर्षों में तो भीड़ एकत्रित करने के लिए कलाकारों को भी बुलाना पड़ा था। हेमामालिनी के परिवार पर ही 40 लाख रुपए का व्यय आया था। प्रश्न यह है कि समारोह की दुर्दशा के लिए दोषी कौन है? जवाब है कि सभी की जिम्मेदारी आती है, नेता और अफसरों पर विशेष।

याद करें कभी महाकवि कालिदास का नाम संस्कृत के पंडितों की जिह्वा पर आता नहीं था, क्योंकि उनकी रचनाएँ घोर श्रृंगारित होती थीं। समारोह के कारण कालिदास का नाम जन-जन तक पहुँचा, उनकी रचनाओं के हिन्दी रूपांतरण प्रस्तुत किए गए। इस पर कुछ विद्वानों को आपत्ति हुई और समारोह में धीरे-धीरे हिन्दी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

लोकप्रिय व्याख्यानमाला में कभी डॉ. भगवतशरण उपाध्याय, श्रीमती कमलारत्नम आया करती थीं, अब संस्कृत विभाग के हेड आते हैं जो प्रतिवर्ष क्रिया-कर्म की तरह अपना पुराना पर्चा पढ़कर टीए-डीए लेकर लौट जाते हैं। कभी यहाँ अलकाजी और हबीब तनवीर नाट्य प्रस्तुति करते थे, अब कमीशन पर आमंत्रित कोई अनाम, दूरदराज की मंडली आती है!

कभी कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक प्रख्यात आद्य रंगाचार्य, कमलेशदत्त त्रिपाठी, श्रीनिवास रथ और डॉ. प्रभातकुमार भट्टाचार्य जैसे विद्वान होते थे, आज नाट्य एवं संस्कृति दोनों कार्यक्रमों में राजनीतिक टिप्पस से कोई छोटा-मोटा कार्यकर्ता ही पहुँचता है।

स्मरणीय है कि उज्जैन के कला-साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में तीन नामों को जनता-जनार्दन के दिलों से कभी नहीं हटाया जा सकता। स्व. पं. सूर्यनारायण व्यास, डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन एवं पद्मश्री विष्णुधर वाकणकर। इनके नाम कालिदास समारोह और उससे जुड़ी संस्थाओं से हटा दिए गए हैं। इस कारण भी समारोह अपनी श्री और कीर्ति खोता जा रहा है।

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