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द्रौपदी का दर्द सबको है, मुझे भी है...

महासमर के महासवाल नरेन्द्र कोहली के साथ

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- स्मृति आदित्य, जयपुर से...

पौराणिक कथाओं के रचयिता नरेन्द्र कोहली के साथ पत्रकार वर्तिका नंदा का सत्र बेहद पसंद किया गया। 'कुंभ स्नान' शीर्षक की व्यंग्य रचना पढ़कर नरेन्द्र ने दर्शकों का दिल जीत लिया। वर्तिका की मधुर आवाज ने सवालों को गहराई से प्रस्तुत किया, वहीं नरेन्द्र कोहली ऊर्जा से भरपूर दिखाई दिए।

नरेन्द्र कोहली ने 'महाभारत' की प्रासंगिकता को रोचक उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि द्रौपदी का दर्द सबको है, मुझे भी है लेकिन तब भी भरी सभा में वस्त्र खींचे गए थे और इस काल में विधानसभा में जयललिता की साड़ी खींची गई थी और जब वे मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने करुणानिधि की धोती खुलवा दी थी तो आप ही बताएं किराजनीति कहां बदली?

'महाभारत' के अपने प्रिय पात्र के बारे में कोहली का कहना था कि कृष्ण के सिवा कौन हो सकता है? लेकिन मुझे धर्मराज युधिष्ठिर भी पसंद हैं। जब धर्मराज ने कहा कि मुझे धर्म चाहिए, सत्ता नहीं तो कृष्ण ने कहा कि जनता को ऐसा ही राजा चाहिए। जिस पात्र से मैं दूर रहना चाहूंगा वह है धृतराष्ट्र।

उन्होंने कहा कि परिवर्तन का खेल सालों में नहीं, हजारों सालों में होता है। जब सब असह्य हो जाता है, तब कृष्ण अवतरित होता है। जिसे सत्य का लोभ है, धर्म का लोभ है लेकिन सत्ता का लोभ नहीं है वही आज के दौर का श्रीकृष्ण होगा।

उस दौर के स्त्री-विमर्श और आज के स्त्री-विमर्श को लेकर उनका कहना था कि ना तब स्त्री की इच्छा पूछी जाती थी और ना ही आज पूछी जाती है। द्रौपदी उस वक्त की स्वतंत्र नारी होकर भी स्वतंत्र नहीं थी।

पांडवों के साथ इतनी रानियों में से कोई नहीं जाती, पर वह जाती है। वह युधिष्ठिर से भी खुलकर सवाल करती है। वह पांचों को डांट-डपट सकती है...। उन्होंने प्रासंगिकता के आधार पर सैरंध्री की कथा पेश की।

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'वेबदुनिया' ने इस पर सवाल किया कि सैरंध्री तब भी असुरक्षित थी और आज भी है, तो क्या उसे भी दंड और क्षमा में से किसी एक को चुनना चाहिए? कोहलीजी ने जवाब दिया कि यह व्यवस्था का दोष है... सैरंध्री क्या, आज कोई भी सुरक्षित नहीं है। नरेन्द्रजी ने माना कि स्वयं नारी को भी सशक्त होना होगा।

वर्तिका ने जब बड़ी ही सहजता से पूछा कि क्या वाचिक परंपरा से 'महाभारत' में बदलाव आया है? तो नरेन्द्र ने आकर्षक अंदाज में जवाब दिया कि तुलसी का ज्ञान और दर्शन वाल्मीकि की रामायण से इस तरह से जुड़ा कि वह पूर्व से श्रेष्ठतम होकर समाज तक पहुंचा। दर्शकों के मिले-जुले सवालों पर नरेन्द्र ने कहा कि जो दुर्बल होता है, उसे हर युग में दबाया जाता है।

उन्होंने कहा कि धन, पद और कद की वजह से किसी को यह अधिकार नहीं मिल जाता है कि वह धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करे। जो राजा अपने-पराए में भेद करता है वह न जनप्रिय है, न धर्मप्राण। कोई लेखक अपने समय से स्वतंत्र नहीं होता।

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