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ब्रिटेन के नाटककार हेराल्ड पिंटर की स्मृति में

हमें फॉलो करें ब्रिटेन के नाटककार हेराल्ड पिंटर की स्मृति में

रवींद्र व्यास

ब्रिटेन के महान नाटककार-कवि हेराल्ड पिंटर का 78 साल की उम्र में निधन हो गया। दुनिया में ऐसे बहुत कम लेखक हैं जिनके राजनीतिक और साहित्यिक सरोकार एक हैं। वहाँ किसी भी तरह की कोई फाँक या दरार नहीं देखी जा सकती। उन्होंने समय समय पर अपने राजनीतिक विचारों को बहुत ही बेबाक ढंग से व्यक्त किया है।


  वे अपने नाटकों के बारे में कहते हैं कि मैं जानता हूँ कि नाटक जनता का माध्यम है औऱ मैं उन्हें बोर नहीं करना चाहता। इसलिए मैं नाटकों में उनकी दिलचस्पी को हमेशा कायम रखना चाहता हूँ ....      
दुनिया में जहाँ भी अन्याय देखा-सुना-पढ़ा उस पर अपना गुस्सा जताया। इराक पर अमेरिकी हमले की उन्होंने कड़ी आलोचना की थी और कहा था कि यह सचमुच पीड़ादायी है। एक ब्रिटिश होने के नाते उन्हें यह बात बहुत व्यथित करती थी। उन्होंने इसी मामले में टोनी ब्लेयर सरकार की भी कड़ी निंदा की थी और कहा था कि इराक हमले में उनके देश का साथ देना बहुत ही शर्मनाक है।

अमेरिका के प्रति उनके देश के रुख की उन्होंने आलोचना की थी। यही नहीं जब नाटो ने सर्बिया पर बमबारी थी तब उन्होंने ब्रिटेन की तीखे शब्दों में निंदा की थी। वे अपने देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर के भी आलोचक रहे हैं। थैचर की मार्केट इकॉनामी की भी उन्होंने धज्जियाँ उड़ाई थीं।

कुल मिलाकर अपनी बनती-बिगड़ती दुनिया को लेकर वे बेहद चिंतित थे। इस दुनिया के नागरिक होने के नाते उन्हें अपनी गहरी जिम्मेदारी का तीखा अहसास था। यही कारण है कि सार्वजनिक मंचों से गाहे-बगाहे अपने विचारों को कहने में वे कभी झिझके नहीं। अपने विचारों को उन्होंने बहुत ही आवेगमय ढंग से अपने नाटकों और कविताओं में अभिव्यक्त किया।

उनके तेवरों और सरोकारों को इस छोटी-सी कविता से समझा जा सकता है। वे अपनी कविता लोकतंत्र में कहते हैं -

कोई उम्मीद नहीं
बड़ी सावधानियाँ ख़त्म
वे दिख रही हर चीज की मार देंगे
अपने पिछवाड़े की निगरानी कीजिए

यह कविता बताती है कि वे दुनिया की सबसे बेहतरीन राजनीतिक व्यवस्था में आम लोगों की स्थिति और हिंसक प्रवृत्तियों को लेकर कितने व्यथित थे कि एक नाउम्मीदी से भरे थे।

1930 में पूर्वी लंदन में एक यहूदी परिवार में उनका जन्म हुआ। वे शुरू से ही विद्रोही स्वभाव के थे। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड में उन्होंने मिलिटरी सेवाओं में हिस्सेदारी करने से मना कर दिया था। उन्होंने बतौर एक अभिनेता अपने करियर की शुरुआत की लेकिन उनका मन लिखने में ज्यादा रमा और उन्होंने अपना पहला नाटक द रूम लिखा, लेकिन उन्हें ख्याति मिली अपने नाटक द बर्थडे पार्टसे। इस नाटक ने उन्हें प्रतिष्ठित कर दिया और इसके बाद फिर उन्होंने 1959 में द केअर टेकर, 1970 में द होमकमिंग, 1974 में नो मैंन्स लैंजैसे नाटक लिखे। शुरुआती संघर्ष के बाद उन्होंने द सर्वेंट, एक्सीडेंऔर द गो बिटवीफिल्मों की पटकथाएँ भी लिखीं।

इसके अलावा उन्होंने कुछ वन एक्ट्स भी लिखे जिसमें अकाउंट ऑफ अलास्का, वन फॉर द रोड, और माउंटेन लैंग्वेज शामिल हैं। उनका एक छोटा-सा नाटक बहुत चर्चित हुआ था द न्यू वर्ल्ड आर्डर। वस्तुतः यह गल्फ वॉर के खिलाफ उनका बहुत ही तीखा व्यंग्य था। यह शीर्षक उन्होंने जार्ज बुश के एक भाषण में इस्तेमाल किए गए फ्रेज से लिया था।

यही नहीं अपनी पचहत्तरवीं वर्षगाँठ पर उन्होंने बीबीसी रेडियो के लिए वाइसेस रेडियो नाटक लिखा जिसे बहुत सराहा गया था। उनके नाटकों में दो मुख्य तत्व रहे हैं-भय और हिंसा। वे मानते थे कि हम जिस दुनिया में रहते हैं वह कई तरह से हिंसक है। और हम कभी न कभी किसी न किसी तरह की हिंसा का शिकार होते रहे हैं।

वे कहते हैं कि मैंने यह हिंसा तब गहरे महसूस की जब इंग्लैंड में फासिस्ट ताकतों की वापसी हुई थी। उन्होंने नाटकों के अलावा सैकड़ों कविताएँ और गद्य के टुकड़े लिखे। उन्होंने एक उपन्यास भी लिखा था, लेकिन उसे प्रकाशित नहीं करवाया। इसी उपन्यास के आधार पर उन्होंने एक नाटक ड्वार्फ्स लिखा था। वे फ्योदोर दोस्तोव्यस्की, अर्नेस्ट हेमिंग्वे, जायस, हेनरी मिलर, बैकेट और काफ्का से प्रभावित रहे हैं।

वे अपने नाटकों के बारे में कहते हैं कि मैं जानता हूँ कि नाटक जनता का माध्यम हैं औऱ मैं उन्हें बोर नहीं करना चाहता। इसलिए मैं नाटकों में उनकी दिलचस्पी को हमेशा कायम रखना चाहता हूँ। उन्हें साहित्य में उनके योगदान के लिए 2005 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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