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लघुकथा सूई की नोक जैसी विधा : डॉ. सतीश दुबे

ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह 'जलतरंग' का विमोचन

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Ravindra Sethia
ND
लघुकथा क्षण-विशेष में उपजे भाव, घटना या विचार के कथ्‍य-बीज की संक्षिप्त फलक पर शब्दों की कूँची और शिल्प से तराशी गई प्रभावी अभिव्यक्ति है। लघुकथा जीवन-खंड के किसी विशेष क्षण की तात्विक अभिव्यक्ति है। एक पंक्ति में कहें तो क्षण में छिपे जीवन के विराट प्रभाव की अभिव्यक्ति ही लघुकथा है। कथ्य, पात्र, चरित्र-चित्रण, संवाद, उद्देश्य ये सब लघुकथा के मूल तत्व हैं।

उक्त विचार सुप्रसिद्ध कथाकार डॉ. सतीश दुबे ने, लेखिका ज्योति जैन के प्रथम लघुकथा संग्रह 'जलतरंग' के विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए। इंदौर लेखिका संघ की उपाध्यक्ष ज्योति जैन की 75 लघुकथाओं के संग्रह 'जलतरंग' ने प्रीतमलाल दुआ सभागृह में साहित्यकार डॉ. सतीश दुबे के मुख्य आतिथ्य तथा कथाकार सनतकुमार की अध्यक्षता में साहित्य-जगत में दस्तक दी।

इस अवसर पर लेखिका ज्योति जैन ने अपनी सृजन प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए कहा कि साहित्यकार व्यक्ति नहीं समाज होता है। समाज को दर्पण दिखाते विषय भी मुझे समाज से ही मिले हैं, मैंने सिर्फ कलम को थामा भर है। मेरी नजर में लघुकथा जीवन की विसंगतियों से उपजी तीखे तेवर वाली सूई की नोक जैसी विधा है। जो दिखने में छोटी मगर गहरे प्रभाव वाली होती है। लघुकथा लेखन के लिए लेखनी के साथ-साथ अवलोकन क्षमता का पैना होना जरूरी है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कथाकार सनतकुमार जी ने कहा कि यूँ तो हर साहित्यिक विधा मेहनत माँगती है लेकिन लघुकथा अधिक श्रमसाध्य है क्योंकि यह लेखक से अधिक चौकस व चौकन्ना होने की माँग करती है। ज्योति जैन की लघुकथाओं में जड़ों के प्रति चिंता जाहिर होती है।

इससे पूर्व संघ की अध्यक्ष मंगला रामचन्द्रन ने जानकारी दीं कि विगत 12 वर्षों से इंदौर लेखिका संघ अस्तित्व में है। हमारी कोशिश है कि सदस्याओं की रचनात्मकता निरंतर निखार पाएँ इसी उद्देश्य को लेकर हमारी साहित्यिक गतिविधियाँ आयोजित होती रहीं हैं। लेखिका के व्यक्तित्व पर डॉ. राजेन्द्र तिवारी ने भावनात्मक उद्बोधन दिया।

आरंभ में अतिथि-द्वय का परिचय सदस्या अनिता नामदेव ने तथा स्वागत श्री शरद जैन व मंगला रामचन्द्रन ने किया। कार्यक्रम का संचालन स्मृति जोशी ने एवं आभार हेमंत बड़जात्या ने माना।

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