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साहित्यकार ही आखिरी उम्मीद : गोविंद मिश्र

पंकज शुक्ला

हमें फॉलो करें साहित्यकार ही आखिरी उम्मीद : गोविंद मिश्र
आतंकवाद आज की समस्या नहीं है। बर्बरता मानव के साथ ही चली आ रही है। साहित्यकार से यह उम्मीद करना गलत है कि वह फौरन बदलाव ला देगा। साहित्यकार की भूमिका उस मशाल को जलाए रखने की है जो आतंक और बर्बरता के खिलाफ आवाज उठाने वालों की राह को रोशन करती है।

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मंगलवार को साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाजे गए प्रतिष्ठित रचनाकार गोविंद मिश्र को आज के बुरे वक्त में साहित्यकार से यही उम्मीद है। उपन्यास, कहानी, कविता, बाल साहित्य, निबंध, संस्मरण सहित तमाम विधाओं में रचनाकर्म करने वाले श्री मिश्र को वर्ष २००४ में प्रकाशित उपन्यास "कोहरे में कैद रंग" के लिए यह अवार्ड मिला है।

अवार्ड की घोषणा के बाद एक मुलाकात में श्री मिश्र ने कहा कि साहित्य अकादमी अवार्ड का मिलना मातृ संस्थान से सम्मानित होने के समान है। इसके लिए चयन साहित्यकार ही करते हैं, इसलिए बहुत अच्छा लग रहा है।

इससे पहले इसी वर्ष फरवरी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी अपने पुराने छात्र श्री मिश्र को साहित्य में योगदान के लिए सम्मानित कर चुका है। "यह अपना चेहरा", "उतरती हुई धूप", "लाल-पीली जमीन" जैसे उपन्यासों में जीवन के विविध रंग बिखरने वाले श्री मिश्र के मुताबिक साहित्यकारों से यह उम्मीद करना कि वे आतंकवाद या इंसानी बर्बरता के खिलाफ फौरन कोई बदलाव ला देंगे, बेमानी है।

साहित्यकार समाज के स्तर पर मूल्यों की मशाल उठाए रहता है। यह अच्छाई की मशाल लोगों को दिशा देती है। व्यक्ति के स्तर पर साहित्यकार का सृजन दुख सहने की ताकत देता है।

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