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सुनो पाकिस्तान, 'आतंकवाद' की हत्या कर दो

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भारत की चिट्ठी पाकिस्तान के नाम 
 
मेरे भाई पाकिस्तान 
 
खत लिखने का यह कोई घड़ी नहीं है। लेकिन मैं 'भारत' दुखी हूं तुम्हारे लिए... तुम्हारी क्यारी के कच्चे फूल के कुचले जाने से, निर्ममता से मसले जाने से, बेदर्दी से रौंद दिए जाने से। मैं नहीं याद करना चाहता अभी उन पलों को जब मुंबई में ताज होटल पर हमला हुआ था तो तुम्हारे कुछ निवासियों ने पटाखे चलाए थे, मैं यह भी नहीं पूछना चाहता कि वे कहां से आए थे? मैं नहीं याद दिलाना चाहता कि हमारे जवान का जब सिर कटकर आया था तो तुम्हारे जवानों को कितनी शाबाशी मिली थी, मैं नहीं याद करूंगा खेल के नाम पर व्यापार बन गए क्रिकेट और हॉकी की। इनमें होने वाली हार दोनों देशों को किस कदर प्रभावित कर‍ती है मैं वह याद नहीं करूंगा। 


 
मैं नहीं याद करूंगा कि अफजल की फांसी के समय तुम्हारे देश से सहमतियों की कैसी लहर उमड़ी थी, कसाब के फांसी के फैसले पर कैसे तुम्हारे देश में ममता का ज्वार उमड़ा था नहीं मैं कुछ भी तुम्हें याद नहीं दिलाऊंगा क्योंकि मैं सचमुच बहुत दुखी हूं नन्हे बच्चों के इस वहशियाना कत्लेआम से... 
 
मैं नहीं याद कर रहा हूं तुम्हारे यहां हाफिज के लिए कैसी सुविधाएं है और दाऊद तुम्हारे लिए क्या मायने रखता है? मैं नहीं याद कर रहा हूं कि ताज के अपराधी समुद्री रास्तों से तुम्हारे ही यहां से आए थे, मैं यह याद भी नहीं दिलाऊंगा कि जितने आतंकी अब तक मिले, पकड़े या छुपे हैं उन सबके ताल्लुक कहीं ना कहीं तुमसे है। 
 
मैं यह भी नहीं बताऊंगा कि तुम्हारी नापाक हरकतों की वजह से मेरे मुसलमान बच्चे कितना कुछ सुनते और सहते हैं।

क्योंकि मैं तुम्हारे दर्द में तुम्हारे साथ हूं, भागीदार हूं, यह वक्त नहीं है तुम्हें अपनी कमजोरियां गिनाने का लेकिन सुनो पाकिस्तान अब तुम संभल जाओ। 
 
सियासी दावपेंच में तुमने अपनी इज्जत जितनी गंवानी थी गंवा ली अब तुम हमारे लिए नहीं खुद अपने लिए संभल जाओ.... आज तुम्हारे कुछ चैनल गुड टेरेरिज्म और बैड टेरेरिज्म की परिभाषा बता रहे थे .... मैं तुम्हें अपने साझा इतिहास की कसम देता हूं मेरे भाई टेरेरिज्म सिर्फ टेरेरिज्म होता है 'गुड' या 'बैड' नहीं....अपने दिल पर हाथ रखकर सोचना कहां से आए तालीबानी, कहां से आए फिदायीन, कहां से आया यह शब्द आतंकवाद.... दुनिया के सारे देश तुम्हारे साथ खड़े हैं लेकिन सब जानते हैं कि यह जहर कहां से आया, किसने इसे फैलाया? 
 
काश्मीर को जितना तुम बर्बाद कर सकते थे कर लिया कुछ प्राकृतिक आपदा ने कसर पूरी कर दी। पर अब अपने घर में लगी इस आग को संभालो मेरे भाई। काश्मीर के युवाओं में जहर मत फैलाओ उन मासूमों को अपने छोटे छोटे रोजगार से ही बहुत प्यार है उन्हें मत बरगलाओ... हो सके तो अपना पाला हुआ यह खतरनाक सांप मार डालो, क्योंकि तरक्की की दरकार तुम्हें भी है, हमें भी है। अमन चैन तुम्हें भी चाहिए, हमें भी.... बच्चे प्यारे हैं तुम्हारे भी हमारे भी... वे ऐसे यूं हमलों का शिकार होकर मरें या आतंकवादी बन कर मरें, जाती तो जान ही है, उजड़ती तो कोख ही है।  
 
मेरे छोटे भाई और कितनी जान चाहिए तुम्हारे आतंकवाद को? पूछ कर बताना। 
 
और हो सके तो अपने देश से 'आतंकवाद' की हत्या कर देना.. आतंकवादियों के ठिकाने नष्ट कर देना, मैं इस काम में हूं ना तुम्हारे साथ... हमेशा... 
 
तुम्हारा बड़ा भाई 
भारत  
   
 

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