पलकों की झीनी झालर पर जब-जब अटकता है तुम्हारी यादों का नन्हा आँसू तब-तब मेरे मन की अमराइयों से आती है उस कोयल की तड़पती आवाज जो तुम्हारे साथ के बीते मौसम में कुहूकती थी मेरे मीठे कंठ में, बैठा है आज कोयल का कंठ और तुम्हारी सुगंधित बातों के उलझे हुए झुरमुट से वह झाँक रही बेबस।