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एक तबस्सुम जो था दुनिया के लिए

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जफर गोरखपुर
NDND
मेरी एक छोटी सी कोशिश तुझको पाने के लिए
बन गई है मसअला सारे जमाने के लिए

रेत मेरी उम्र मैं बच्चा, निराले मेरे खेल
मैंने दीवारे उठाई हैं, गिराने के लिए

वक्त होठों से मेरे वो भी खुरचकर ले गया
एक तबस्सुम जो था दुनिया को दिखाने के लिए

देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना
तजरुबे आए थे संजीदा बनाने के लिए

यूँ बजाहिर हम से हम तक फासला कुछ भी न था
लग गई एक उम्र अपने पास आने के लिए

मैं जफर-ता-जिंदगी बिकता रहा परदेश में
अपनी घरवाली को एक कंगन दिलाने के लिए।

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