Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अपना घर

सुबोध चतुर्वेदी

हमें फॉलो करें अपना घर
ND
जब बचपन हो रहा था विदा
दुनिया की नजरों में वह हो रही थी बड़ी
अचानक उसके चारों ओर खींच दी गईं दीवारें
उसे उठने-बैठने का सलीका सिखाया जाने लगा
एक दिन उसे पराए घर जाना है, बात-बात में
जताया जाने लगा, वह बौखला उठी
मां, क्या यह घर मेरा नहीं है?
नहीं बेटी, लड़की तो पराया धन है।
कलेजे पर पत्थर रखकर हर मां-बाप
बेटी को विदा कर ही देते हैं, फिर वही
होता है उसका अपना घर
एक दिन सदियों से चली आ रही
परम्परा का किया गया निर्वाह
गाजे-बाजे के साथ नितांत अजनबियों के बीच
वह ढूंढती रही उसका अपना घर
उस घर की अलग थीं परम्पराएं
निर्वाह में जब-तब कर बैठती कोई गलती
पराए घर की बेटी कहकर उसे तिरस्कृत कर दिया जाता
आंखों में आंसू भरे वह पूछती अपने-आप से
आखिर इतनी बड़ी दुनिया में वह
कहाँ खोजे अपना घर, जहां
उसकी अस्मिता पर कोई न करे प्रहार
सिर उठाकर वह कह सके देखो,
देखो यह है मेरा अपना घर।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi