नि:शब्द था पर एक अनुबंध था हम नहीं बिछड़ेंगे कभी आँसुओं के पतझर में सुंदर स्मृतियों से भरकर एक-दूसरे का दामन हम कहेंगे अलविदा। पर बस निमिष मात्र को हमें मिलना था इस जीवन से परे भी विश्वास की अग्नि के समक्ष हम चल रहे थे सात कदम जन्म-जन्मांतर के लिए। एक धुँधली-सी याद है एक क्षण को बीच में थे धर्म, समाज, नियम के बंधन
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प्रेम की शक्ति से नियमों के द्वंद्व में जब जीतने को था विश्वास उसने जाने क्यों मान ली हार, देखा नहीं मुड़कर कभी फिर मैं युगों से प्रतिच्छाया-सी चल रही हूँ उसके कदमों पर रख कर कदम भूलाकर अपने अस्तित्व का क्रंदन।