यूँ तो हर मोड़ पर मिली सी है,
जिंदगी फिर भी अजनबी सी है।
फिर कोई याद डस गई शायद,
आँख में आज फिर नमी सी है।
हसरतों का जनाजा उठता है,
हर तरफ एक खामोशी सी है।
दर्द हर दर पे ठहर जाता है,
शक्ल उसकी भी आदमी सी है।
कहकहों का नकाब चेहरे पर,
आह हर साँस में दबी सी है।
साभार : लेखिका 08