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तुम्हारी राह के अँधेरे

दीपाली पाटील

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ND
शाम की नदी से कुछ बूँदे चुरा लेता है
फिर सूरज अपनी प्रखरता खो देता है
चाँदी के कण लूटाने से पहले
प्रकृति के कैनवास पर कोई चितेरा
स्वर्णयुक्त केसर बिखेर देता है
रोशनी की जगमगाती कतारें
राहों को खोने नहीं देती अँधेरे में
पंछी लौटने लगते हैं जब अपने बसेरे में
एक दिया जलाकर तुलसी के पास
मैं भी माँग लेती हूँ चुपके से
तुम्हारी राह के अँधेरे।

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