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दिवाली कविता : दीप जलेगा जिस दिन दिल में

हमें फॉलो करें दिवाली कविता : दीप जलेगा जिस दिन दिल में
कैलाश 'सनातन' यादव 
 
 महलों में रहते मतवाले,
मावस को करते दीवाली
रात-रात को जागते रहते
महलों की करते रखवाली
उनकी जाकर देखी खोली
हमने देखी रात है काली...


 

लक्ष्मी होती है चंचला
उल्लू उसका वाहन है
जिसने पूजा बस लक्ष्मी को
वो क्या समझेगा अंधियारा
जिसने पूजा विष्णुप्रिया को
तब होगा जग में उजियारा... 
 उनकी जाकर देखो खोली
हमने देखी रात है काली...
 
कितने दीप जला लो जग में
उजियारा नहीं होने वाला
दीप जलेगा जिस दिन दिल में
 समझो ईश है आने वाला
छप्पन भोग बना लो सारे
और सजा लो तुम सब थाली
रखवाला जब तक है भूखा
मान के चलना मन है खाली
उनकी जाकर देखो खोली
हमने देखी रात थी काली...
 
 एक तरफ नन्हे हाथों में
हमने देखी हैं फुलझड़ियां
और उधर खोली में देखी
नन्हे हाथों भूख की कड़ियां 
कौन करेगा दूर तमस को
कौन भरेगा खाई है खाली
 उनकी जाकर देखी खोली
 हमने देखी रात है काली...

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