वक्त धोखा इस तरह दे जाएगा सोचा न था,
आदमी इस हद तलक गिर जाएगा सोचा न था।
स्वर्ग धरती पर उठा लाने की कोशिश में स्वयं,
आदमी ही स्वर्ग को उठ जाएगा सोचा न था।
सींच कर अपने पसीने से जिसे पाला किए,
बागवां उस फूल से छल जाएगा सोचा न था।
हम बनाते ही रहे नक्शा नए निर्माण का,
मृत्यु में निर्माण यों ढल जाएगा सोचा न था।
वक्त की जादूगरी समझा न कोई आज तक,
कब कहाँ कैसे सभी छूट जाएगा सोचा न था।
साभार : कथाबिंब