दूरियों की सघन काली घटाओं से अचानक झाँक उठी यादों की चमकीली चाँदनी और मेरे उदास आँगन में खिल उठी तुम्हारे प्यार की नाजुक कुमुदनी, कितनी देर तक मैं अकेली महकती रही नयन-दीप में अश्रु-बाती सुलगती रही,
एक घना झुरमुट कड़वे शब्दों का अब भी हमारे साथ है पर मुझसे लिपटी हुई तुम्हारी रूमानी आवाज है। और हमारे बीच पसरा है यह झूठ कि हम दोनों नाराज है।