मनोज कुमार झा
मेरी खिड़की के पास केले के पेड़ थे
रात में धुलकर हुई भारी बूँदें बजती थीं टप-टप
तेरे आगँन में नीम के पेड़ थे।
मद्धम बोलते बारिश से
मुझे केले के पत्तों पर बारिश जुड़ाती थी
और तुझे नीम के पत्तों पर
वो हमारे होने का वसंत था
हमने माना कि हर जगह बारिश होती है सुन्दर
मेरी धूप माँजती थी तेरी हरियाली
तेरी धूप माँजती मेरी हरियाली को
हमारी जड़ों ने तज दी मिट्टी
हमारे तनों ने तजा पवन
हम ब्रह्माण्ड के सभी बलों से मुक्त थे
नाचते साथ-साथ
अब मुझे मेरी मिट्टी बाँध रही है
मुझे मेरा पवन घेर रहा है
हर दिशा से है बलों का प्रहार
आओ, कहो कि कहीं भी हो अच्छी लगती है बारिश
कहो कि बारिश अच्छी केले पर भी नीम पर भी।