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हिन्दी कविता : मन के द्वारे से...

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राकेशधर द्विवेदी

गांव के बीच में
एक बरगद का पेड़
पेड़ से जुड़े हुए
स्मृतियों के मधुर गीत


 
वह शाखाएं जिसको
पकड़कर हम झूलते थे
अनेक तरह के
खेल खेलते थे
 
मां जलाती थी दीया
पेड़ के नीचे
और करती थी पूजा
वटवृक्ष की
 
बांध देती थी
कुछ कलेबे पेड़
के चारों तरफ
इस विश्वास के साथ
कि हम सुरक्षित रहेंगे
 
आज उसका अस्तित्व
प्रश्नचिह्न के घेरे में है
उसका भविष्य अंधेरे में है
क्योंकि गांव अब बहुमंजिली
इमारत में तब्दील
हो रहा है
नगरीकरण का दानव
बरगद के अस्तित्व को लील रहा है
 
हे परेशान तमाम 
परिंदे भी
जो पूछ रहे हैं
यक्षप्रश्न
कि कहां बनाएंगे
हम नीड़? 
 
बोगनबेलिया पर
या मनीप्लांट पर?
यह यक्षप्रश्न अनुत्तरित है
दुख और पीड़ा असीमित है
 
अब मन के द्वारे से
बार-बार उस बूढ़े
बरगद की याद सताती है
बरगद से जुड़ी हुईं स्मृतियां
अचेतन मन में
रच-बस जाती है।

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