बेटी पर पिता का प्यार बरसाती कविता
बेटी तेरे सौभाग्य का सिंदूर घोलकर मैं लाया हूं
लिखा विधाता ने भाग्य में तेरे जो वो वर आज मैं ढूंढ के लाया हूं
कलेजे का टुकड़ा है तू मेरा, कभी न किया है दूर तुझे खुद से
पर लाड़ली तेरी और मेरी जुदाई का वचन देकर आया हूं
बेटी तेरे लिए आज मैं शादी का जोड़ा लाया हूं
सुन्दर रंगों से सजे वो मेहंदी लेकर आया हूं
गुड़िया जैसी लाड़ली बेटी तेरे लिए
मैं रुमझुम करते झांझर लाया हूं
मन रोए है पर होठों पर मुस्कान लेकर आया हूं
अक्स है तू मेरा फिर भी दूसरा अक्स मैं लाया हूं
कहलाती है हर बेटी धन पराया क्यों?
जबकि तू तो है जान मेरी लाड़ली
पत्थर दिल बाप भी रो पड़ते बेटी की बिदाई पर
हो जाएगा आंगन सूना लाड़ली तेरे जाने पर
जाकर ससुराल खुशबू बनकर महका देना तू सबका जीवन
तुझ बिन सूना हो जाएगा बाबुल का आंगन
फिर झंखना लिए मन में तेरे सुख का संदेशा लाया हूं
पोंछ ले अपने आंसू लाड़ली खुशी का अवसर लाया हूं...।