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काव्य संसार : दामन का दाग...

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शम्भू नाथ

दामन के दाग को।। 
आंसुओं से धो रही हूं।। 


 

 
कोसती हूं उसको।। 
दिन-रात रो रही हूं।। 
 
लोक-लाज के दर पर।। 
कोख की विशेषताएं।। 
आगे जब देखती हूं।। 
अंधकार ही दिखाए।। 
 
लोगों के ताने सुन-सुन।। 
दिन-रात खो रही हूं।। 
उसका अता-पता नहीं।। 
रहा न ठिकाना।।
 
सोचती हूं आगे क्या 
कहेगा जमाना।।
ख्वाबों को अपने गम संग।। 
पल-पल कोसती हूं।। 
 
चिंता से घटा शरीर है।। 
सूख गई है काया।। 
समझ सकी कुदरत।। 
कैसी तुम्हारी माया।। 
 
बुझने न पाए दीप मेरा।। 
बला को रोकती हूं।। 

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