Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कविता : दूध का उफान

हमें फॉलो करें कविता : दूध का उफान
- डॉ. गरिमा संजय दुबे 


'लो फिर दूध उफन गया' कहते हुए, दौड़ते हूए 
मैंने गैस बंद कर दी।
 
webdunia

 
इतनी देर से दूध के गरम होने का इंतजार 
कर रही थी मैं, 
तनिक सी निगाह घुमाई ही थी 
कि धोखेबाज दूध उफन पड़ा
 
सोचा, क्या दूध को भी इंसानी 
फितरत ने ग्रस लिया है, 
जब तक आप सामने है 
सब कुछ शांत, निर्मल, सौम्य 
 
नजर आता है, लेकिन जैसे ही 
पीठ फिरती है कि आ जाता है 
आलोचनाओ का उफान, 
 
जो कुछ देर के लिए गंदा कर जाता है 
रिश्तों के प्लेटफॉर्म को। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi