नहीं चाहिए प्रभु मुझे
इच्छित मृत्यु का वरदान
मैं और नहीं सह सकता
तुम्हारा ये अभिमान
मैं मरना चाहता उन तमाम
नौजवान दोस्तों के साथ
जो भुखमरी, शोषण और
असमानता के शिकार हैं
मैं करना चाहता हूं
प्राण-प्रतिष्ठा तुम्हारी उस मूर्ति में
जिसमें हजारों बार उन्होंने शीश नवाए हैं
स्वर्ग और नर्क के तुम्हारे
स्वप्निल सपनों से मैं
तंग आ गया हूं
यदि कुछ देना चाहते हो
तो क्यों नहीं स्वर्ग बना देते हो
मेरी प्यारी धरती को
जिसकी सौंधी खुशबू
मुझे आमंत्रित करती है
इंकलाब करने को
तुम्हारी इस व्यवस्था के खिलाफ
जिसमें हिन्दू हैं, मुसलमान हैं
सिख हैं, ईसाई हैं
पर आपस में नहीं भाई-भाई हैं
किसी के लिए तुमने खोले हैं चर्च
किसी के लिए तुमने खोले गुरुद्वारे हैं
कहीं पर मस्जिद हैं
कहीं पर मंदिर नगाड़े हैं
मैं जानता हूं
यह सब तुम्हारी साजिश है
आपस में इनको लड़ाने की
इस सुंदर दुनिया को नर्क बनाने की
क्योंकि यदि यह दुनिया
स्वर्ग बन गई
तो तुम्हारे स्वर्ग में
झांकने कौन आएगा?
तुम्हारे चित्रों पर
माला कौन चढ़ाएगा?