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कविता : मेरी तुम

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सुशील कुमार शर्मा

भाइयों के लिए 'जिज्जी', मायके की 'गुड्डी' तुम, 
ससुराल की 'अर्चना', बच्चों के लिए 'अच्छी मां' तुम।


 
पड़ोसियों के लिए 'भाभी' 'चाची', छात्रों के लिए 'मैम' तुम, 
सभी रिश्तों को अपने आंचल में समेटती तुम।
 
मेरे सूने आंगन को बसंती रंगों से सरोबार करती तुम, 
दुखों के बदले सुखों की बारिश करती तुम।
 
मेरे अहसासों, मेरे जज्बातों को गुनगुनाती तुम, 
मेरे दर्द के तूफानों को मलहम-सी सहलाती तुम।
 
खुद से ज्यादा मेरे सुखों का ध्यान रखती तुम, 
हर खुशी मुझसे शुरू कर मुझ पर खत्म करती तुम।
 
इन 22 वर्षों में मुझ में अपना अस्तित्व खोती तुम, 
बहुत आभार इन 22 वर्षों में मुझे बच्चे की तरह संभालने के लिए।

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