सुनीता काम्बोज
मां तो रोकर के हर बात कह जाती है
पर पिता की तो मन में ही रह जाती है
पुरुष दिल में क्या अरमान होते नहीं
क्या पिता जी यह सपने संजोते नहीं
फर्क इतना है बस वह बताते नहीँ
या तरंगें वह हम छू पाते नहीं
मां भले हर ही तूफान सह जाती है
पर - -
घर की मजबूत सबसे कड़ी है पिता
जो कभी ना रुके वह घड़ी है पिता
सारा परिवार मोती सा लगता मुझे
जो पिरोए इन्हें वह लड़ी है पिता
सब्र का बांध मां भी ढह जाती है
पर - -
मां है गर राग संगीत मेरे पिता
मां है उम्मीद तो जीत मेरे पिता
मां अगर दीप है रोशनी बन गए
मां है मर्यादा तो रीत मेरे पिता. ..
आंख काम्बोज की तो बह जाती है
पर पिता की तो मन में ही रह जाती है....