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सुनो सखी! अब तो भीतर आ जाओ....

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-शैली बक्षी खडकोतकर   
 
सुनो सखी! बहुत दिन फिरे
तुम्हारी पायल की रुनझुन सुने
ताजा लीपा मन का आंगन
पग निशानी दे जाओ
सुनो स्नेही! रोपा था तुमने जो,
मंजरियों से लद गया है
तुम्हारे प्रेम का तुलसी चौबारा
दीप प्रज्जवलित रख जाओ
 
सुनो प्रिये! तोरण से सजा अंत:पुर का द्वार
बस तकता है राह तुम्हारी
अमृत कलश छलका कर
अब तो भीतर आ जाओ....

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